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________________ वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ इससे सहजही पद्मावती नगरीकी विशालता और समृद्धिका अनुमान लग जाता है। इस नगरीको नागराजाओंकी राजधानी बननेका भी सौभाग्य प्राप्त हुआ था। पद्मावती, कांतिपुरी और मथुरामें नौ-नागराजाओंके राज्य करनेका उल्लेख भी मिलता है। पद्मावतीनगरीके नागराजाओंके सिक्के भी मालवे में कई जगह मिले हैं ग्यारहवीं सदीमें रचित 'सरस्वती कण्ठाभरण' में भी पद्मावतीका वर्णन है और मालतीमाधवमें भी पद्मावतीका नाम पाया जाता है, आज वह नगरी वहां अपने उस रूपमें नहीं हैं, ग्वालियर राज्यमें उसके स्थानपर 'पवाया' नामका छोटासा गांव बसा हुआ है, जो देहलीसे बम्बई जाने वाले जी. आई. पी. रेल्वेकी लाइनपर 'देवरा' नामके स्टेशनसे कुछ ही दूरपर स्थित है । यह पद्मावती नगरी ही 'पद्मावती पुरवाल' जातिके निकासका स्थान है। इस दृष्टिसे वर्तमान 'पवाया' ग्राम पद्मावतीपुरवालों के लिए विशेष महत्वकी वस्तु है। भले ही वहां पर आज पद्मावती पुरवालोंका निवास न हो; किन्तु उसके आसपास ही आज भी वहां पद्मावती पुरवालोंका निवास पाया जाता है। ऊपरके इन उल्लेखों से ग्राम नगरादिके नामोंपरसे उपजातियोंकी कल्पनाको पुष्टि मिलती है। श्रद्धेय पं० नाथूरामजी प्रेमीनेअनेकान्त वर्ष ३,कि.७ में 'परवार जातिके इतिहासपर प्रकाश' नामके अपने लेखमें परवारों के साथ पद्मावती पुरवालोंका सम्बन्ध जोड़नेका प्रयत्न किया है। और पंडित बखतरामके 'बुद्धि विलास' के अनुसार उन्हें सातवां भेदभी बतलाया है । हो सकता है कि इस जातिका कोई सम्बन्ध प्ररवारों के साथ भी रहा हो, किन्तु पद्मावती पुरवालोंका निकास परवारोंके 'सप्तम मूर' पद्मावतिया' से हुआ हो, यह कल्पना ठीक नहीं लगती और न प्राचीन प्रमाणोंसे उसका समर्थन ही होता है, तथा न सभी 'पुरवाड वंश' परवार ही कहे जा सकते हैं । और न इस कल्पनाका साधक कोई प्राचीन प्रमाण भी उपलब्ध है। किसी जातिके गोत्रों अथवा मूरसे अन्य किसी जातिके नामकरण करनेकी कल्पनाका कोई आधार भी नहीं मिलता, अतएव उसे संगत नहीं कहा जा सकता। ___ कविवर रइधूके स्वयं 'पोमावई' नगरीके समुल्लेख द्वारा, जो पंडित बखतरामसे कमसे कम दो सौ वर्षसे भी अधिक पुराने विद्वान हैं, अपनेको पद्मावती पुरवाल प्रकट करते हैं जिसका अर्थ पद्मावती नामकी नगरीके निवासी होता है । हां, यह हो सकता है कि पद्मावती नामकी नगरीमें बसने वाले परवारों के उससे बाहर या अन्यत्र बस जानेपर उन्हें 'पद्मावतिया' कहा जाने लगा हो जैसा कि आजकल भी देखा जाता है कि देहली या कलकत्ते वाले किसी सजनके किसी अन्य शहरमें बस जानेपर उसे 'देहलिया' १. नवनागाः पद्मावत्या कांतिपूर्यां मथुरायां, विष्णुपुराण अंश ४ अध्याय २४ । २. स्व० ओझाजी कृत राजपूतानेका इतिहास, प्रथम जिल्द, पृ० २३० । ३ सात खाप परवार कहावें.. पद्यावतिया सप्तम मानो । ४००
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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