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________________ महाकवि रइधू देवराय संघाहिव णंदणु, हरिसिंघु बुहयण कुल पाणंदणु । पोमवइ-कुल-कमल-दिवायरु- सो वि सुणंदउ एत्थु जसायरु । जस्स घरिज रइधू बुह जायउ, देव-सत्थ-गुरु-पय-अणुरायउ। उक्त कवि रइधूने अपने कुलका परिचय 'पोमावइकुल' और 'पोमावइ पुडवारवंस' वाक्यों द्वारा कराया है, जिससे वे पद्मावतीपुरवाल जान पड़ते हैं । जैन इतिहासमें चौरासी प्रकारके वंशों अथवा कुलोंका उल्लेख मिलता है। उनमें कितने ही वंशोंका अस्तित्व आज नहीं मिलता; किन्तु इन चौरासी वंशोंमें कितने ही ऐसे वंश हैं जो पहले बहुत समृद्ध रहे हैं किन्तु आज वे समृद्ध अथवा सम्पन्न नहीं दीखते, और कितनी ही जातियों अथवा वंशोंको इसमें गणना ही नहीं की गयी है जैसे धर्कट, आदि । इन चौरासी वंशोंमें 'पद्मावतीपुरवाल' भी एक वंश है और जो प्रायः आगरा, मैनपुरी, एटा और ग्वालियर, आदि स्थानोंमें आबाद है। इनकी जन संख्या भी कई हजार पायी जाती है। वर्तमानमें यह वंश उन्नत नहीं है तो भी इस वंशके कई विद्वान जैनधर्म और समाजकी सेवा कर रहे हैं । यद्यपि इस वंशके विद्वान अपना उदय ब्राह्मणोंसे बतलाते हैं और अपनेको देवनन्दी (पूज्यपाद) का सन्तानीय भी प्रकट करते हैं; किन्तु इतिहाससे उनकी यह कल्पना सिद्ध नहीं होती क्योंकि प्रथम तो उपवंशों (जातियों)का अधिकांश विकास संभवतः विक्रमकी दसवीं शतीसे पूर्वका प्रतीत नहीं होता, हो सकता है कि वे इससे भी पूर्ववर्ती रहे हों; परन्तु विना किसी प्रामाणिक अनुसंधान के इस सम्बन्धमें कुछ नहीं कहा जा सकता है। वंशों और गोत्रोंका विकास अथवा निर्माण ग्राम, नगर, और देश आदिके नामोंसे हुआ है । उदाहरण के लिए सांभरके आस-पासके वघेस' स्थानसे वघेरवाल, 'पाली' से पल्लीवाल, 'खण्डेला' से खण्डेलवाल, 'अग्रोहा' से अग्रवाल, 'जायस' अथवा 'जैसा'से जैसवाल, और 'ओसा' से ओसवाल जातिका निकास हुआ है। तथा चंदेरीके निवासी होनेसे चंदेरिया, चन्द्रवाडसे चांदुवाड अथवा चांदवाड, और पद्मावती नगरीसे 'पद्मावतिया' आदि गोत्रों एवं मूलोंका उदय हुआ है । इसी तरह अन्य कितनी ही जातियोंके सम्बन्धमें प्राचीन लेखों ताम्रपत्रों, सिक्कों, ग्रन्थप्रशस्तियों और ग्रंथों आदि से इतिवृत्तका पता लगाया जा सकता है। ___ कविवर रइधुके ग्रन्थोंमें उल्लिखित 'पोमावई' शब्द स्वयं पद्मावती नामकी नगरीका वाचक है। यह नगरी पूर्व समयमें खूब समृद्ध थी, उसकी समृद्धिका उल्लेख खजुराहोके वि० सं० १०५२ के शिलालेख में पाया जाता है, जिसमें बतलाया गया है कि यह नगरी ऊंचे ऊंचे गगन चुम्बी भवनों एवं मकानोंसे सुशोभित थी, जिसके राजमार्गों में बड़े बड़े तेज तुरंग दौड़ते थे और जिसकी चमकती हुई स्वच्छ एवं । शुभ्र दीवारें आकाशसे बातें करती थीं । जैसा कि "सौधोत्तुंग पतंग..."आदि दो पद्योंसे प्रकट है। १ पं० विनोदीलालकृत फूलमालपच्चीसी, बृहजिनवाणी संग्रह पृ० ४८५ ।
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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