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________________ वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ और वैदिक धर्मके बहुत प्राचीन ऐतिहासिक अवशेष पाये जाते है; किन्तु खास ग्वालियर में बौद्ध वैदिकों और जैनियोंके पुरातत्त्वकी विपुल सामग्री मिलती है, जिससे स्पष्ट मालूम होता है कि ग्वालियर किसी समय जैनियोंका केन्द्र था। जैन साहित्यमें वर्तमान ग्वालियरको 'गोपाचल', गोपाद्रि, गोवगिरि, गोवागढ़, और ग्वालिय नामसे उल्लेखित किया गया है। ग्वालियरका यह किला बहुत प्राचीन है और उसे सूरजसेन नामके राजाने बनवाया था। कहा जाता है कि वहां ग्वालिय नामका एक साध रहता था जिसने राजा सूरसेनके कुष्टरोगको दूर किया था। अतः उस समयसे ही इसका नाम ग्वालियर प्रसिद्ध हुआ है। ग्वालियर इतिहासमें अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है । यहां का 'दूबकुण्ड' वाला शिलालेख जैनियोंके लिए विशेष महवत्त्की वस्तु है । उसमें संवत् ११४५ से पूर्व कई ऐतिहासिक जैनाचार्योंका उल्लेख पाया जाता है । और सासबहूके मन्दिरमें वि० सं० ११५० का एक शिलालेख भी उत्कीर्ण है, जिसमें कच्छपघट या कछवाहा वंशके लक्ष्मण, वज्रदामन, मंगलराज, कीर्तिराज, मूलदेव, देवपाल, पद्मपाल, और महीपाल नामके दश राजाओंका यथाक्रमसे समुल्लेख किया गया है। तीसरा 'नरवर' का वह ताम्रपत्र है जो वि० सं० ११७७ में वीरसिंहदेवके राज्यमें उत्कीर्ण हुआ है। इसके सिवाय, ग्वालियर में जैनियोंके भट्टारकोंकी पुरानी गद्दी रही है, खासकर वहांपर देवसेन, विमलसेन, धर्मसेन, भावसेन, सहस्रकीर्ति, गुणकीर्ति, यशःकीर्ति, मलयकीर्ति, और गुणभद्रादि अनेक भट्टारक और मुनि हुए हैं। उनमें भ० यशःकीर्ति और भ० गुणभद्र आदिने चरित, पुराण तथा ग्रन्थोंकी रचना की है। ___ ग्वालियरका यह किला एक विशाल पहाड़ी चट्टानपर स्थित है और कलाकी दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। किलेमें कई जगह जन मूर्तियां खुदी हैं इस किलेसे पहाड़ीमें होकर शहरके लिए एक सड़क जाती है । इस सड़कके दोनों ओर चट्टानों पर उत्कीर्ण हुई कुछ जैन मूर्तियां अंकित है। ये सब मूर्तियां पाषाणकी कर्कश चट्टानोंको खोदकर बनायी गयीं हैं । इन मूर्तियोंमें भगवान आदिनाथकी मूर्ति सबसे विशाल है, इसके पैरोंकी लंबाई नौ फीट है और इस तरह यह मूर्ति पैरोंसे पांच या छह सात गुणी ऊंची है । मूर्तिकी कुल ऊंचाई ५७ फीटसे कम नहीं है। मुनि शीलविजय और सौभाग्यविजयजीने अपनी अपनी तीर्थमालामें इस मूर्तिका प्रमाण बावन गज बतलाया है । और बाबरने अपने आत्मचरितमें इस मूर्तिको करीब ४० फीट ऊंची लिखा है साथ ही उन नग्न मूर्तियोंको खंडित कराने के १ एपो. इण्डि० भा० २ पृ० २३७ । २ "बावन गज प्रतिमा दीपती गढ़ गुवालेरि सदा सोभती ।। ३३ ।"-तीर्थमाला पृ० १११ । “गढ ग्वालेर बावनगज प्रतिमा वंदु ऋषभ रंगरोलीजी, १४-२ यह प्रतिमा बावन गजकी नहीं है, यह किसी भूलका परिणाम जान पड़ता है। (सौभाग्यविजय तीर्थमाला पृ० ९८) ३ बाबरका उस मूर्तिको ४० फीटकी बतलाना भी ठीक नहीं है वह ५७ फीटसे कम नहीं हैं । ४०४
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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