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वर्णी- अभिनन्दन ग्रन्थ
हैं, उनके लिए तो त्रसघात, एकेन्द्रिय बहुघात, प्रमाद, अनिष्ट और अनुपसेव्य पदार्थों के त्यागके उपदेश द्वारा उक्त खरकमका परिहार बतलाया ही जा चुका है।
'अत्राह सितम्बराचार्यः' इस वाक्यसे किसी प्रसिद्ध श्वे० आचार्य के किसी महत्त्वपूर्ण या प्रसिद्धि प्राप्त ग्रन्थका उनके सामने होना निश्चित है । उपर्युक्त प्रमाणों और उद्धरणोंके प्रकाशमें यह बात भी निश्चित सिद्ध होती है कि वह ग्रन्थ श्रा० हेमचन्द्रका प्रसिद्ध योगशास्त्रा ही था । और उसीसे ये स्थल लिये गये हैं । पंडिताचार्यकी उदारता तथा जिनवच प्रीति आजके साहित्यिक सम्प्रदायवादियों के लिए प्रकाश स्तम्भ है ।
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