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________________ सागारधर्मामृत और योगशास्त्र अतिचारोंका वर्णन-योगशास्त्रके तीसरे अध्यायमें श्लोक नं० ९० से ११९ तक श्रावकके व्रतोंके अतिचारोंका वर्णन है । स्वोपज्ञ टीकामें परंपरासे चले आनेवाले अतिचारोंका खूब स्पष्ट विचेचन किया गया है जो उस समय तकके रचित श्वे० ग्रन्थोंमें देखनेको नहीं मिलता। इस प्रकरणके श्लोकोंकी टीका सागारधर्मामृतमें यथास्थान वर्णित १२ व्रतोंके अतिचारोंके व्याख्यानमें ज्योंकी त्यों उठाकर रख दी गयो प्रतीत होतो है, अन्यथा दोनों टीकात्रों में शब्दशः समता न दिखायी देती। दि० परम्पराके श्रावका. चार सम्बन्धी ग्रन्थोंमें पं० श्राशाधरजीके पूर्व किसी भी प्राचार्यने अतिचारोंकी व्याख्या उस प्रकारसे नहीं की, जिसप्रकारसे कि पं० जीने सागारधर्मामृतमें की है। यही कारण है कि इस अदृष्ट और अश्रुत-पूर्व अतिचारोंकी व्याख्यासे दि० विद्वान् जहां एक ओर उन्हें प्राचार्य कल्प कहने में गौरवका अनुभव करते श्रा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर शुद्ध आचरण पर दृष्टि रखनेवाले कुछ दि० विद्वान् उनके ब्रह्मचर्याणुव्रत संबंधी अतिचारोंकी व्याख्यासे चौंकते हैं और उनके इस प्रसिद्ध और अनुपम ग्रन्थका वहिष्कार भी करते चले आरहे हैं। खरकर्मोका उल्लेख-भोगोपभोगपरिमाण व्रतके व्याख्यानमें श्रा० हेमचन्द्रने श्वे० आगमोंमें प्रसिद्ध १५ खरकर्मों का योगशास्त्रके तीसरे अध्याय में श्लोक नं० ९९ से ११४ तक वर्णन किया है । पं० श्राशाधरजीने सागार० अ०५ श्लो० २० में भोगोपभोगव्रतके अतिचारोंकी व्याख्या करनेके बाद एक शंका-समाधान लिखकर उसके आगे ही १५ खरकर्मोंका का वर्णन तीन श्लोकोंमें करके तीसरे द्वारा उनकी निरर्थकता भी बतलानेका उपक्रम किया है । शंका-समाधान विषयक अंश इसप्रकार है-“अत्राह सितम्बराचार्यः-भोगोपभोगसाधनं यद्रव्यं तदुपार्जनाय यत्कर्म व्यापारस्तदपि भोगोपभोग शब्देनोच्यते कारणे कार्योपचारात् ततः कोटपालनादि खरकर्मापि त्याज्यम् । तत्र खरकर्मत्यागलक्षणे भोगोपभोगव्रते अंगारजीविकादीन् पंचदशातिचारांस्त्यजेदिति । तदचारु, लोके सावध कर्मणां परिगणनस्य कतुमशक्यत्वात् । अथोच्यते अतिमन्दमति प्रतिपत्त्यर्थं तदुच्यते तर्हि तान् प्रतीदमप्यतु । मन्दमतीन प्रति पुनस्त्रसबहुघात विषयार्थत्यागोपदेशेनैव तत्परिहारस्य प्रदर्शितित्वादिति ।" अर्थात्-शंका-यहां कोई श्वेताम्बर आचार्य कहता है कि भोग और उपभोगके साधनभूत द्रव्यके उपार्जनके लिए जो कर्म या व्यापार किया जाता है वह भी कारणमें कार्यके उपचारसे 'भोगोपभोग' इस शब्दसे कहा जाता है । इसलिए कोतवाली करना आदि खरकर्म (क्रूरकार्य ) भी छोड़े अतः उन खरकर्मों का त्याग कराने वाले भोगोपभोग व्रतमें अंगारजीविका श्रादि १५ अतिचारोंको छोड़ना चाहिए । समाधान-उक्त कथन ठीक नहीं, क्योंकि लोकमें प्रचलित सावद्य (पाप ) कार्योंकी गणना करना अशक्य है । यदि कहो कि अत्यन्त मन्दबुद्धि शिष्योंको समझानेके लिए अंगार-जीविकादि खरकर्मों को कहते हैं, तो उनके लिए भले ही आप कहिये । किन्तु उनसे जो कुछ अधिक जानकार मन्दमति ३७३
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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