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________________ सम्यक्त्वकौमुदीके कर्ता श्री प्रा. राजकुमार जैन, साहित्याचार्य, आदि __'सम्यक्त्वकौमुदी'' 'पञ्चतन्त्र' की शैलीमें लिखी गयी बहुत ही महत्त्वपूर्ण, रोचक तथा स्वलपकाय रचना है । कलाकारने अपनी इस लघुकाय रचनामें भी सम्यक्त्वको अङ्कुरित करनेवाली उन आठ प्रधान कथाओंका समावेश किया है, जिन्हें पढ़कर कोई भी सहृदय पाठक प्रभावित हुए विना नहीं रह सकता। इन्हें गढ़नेमें कलाकारने अपनी निसर्ग निपुणता और प्रसन्न प्रतिभाका पूरा उपयोग किया है और यही कारण है जो आज भी ये कथाएं पाठकोंके मनोभावोंको सम्यक्त्वके प्रति उद्दीप्त करने में समर्थ हैं । यहां हम इस रचनाके कुशल कलाकारके सम्बन्धमें ही प्रकाश डालना चाहते हैं, जो इस महत्त्वपूर्ण कला-कृतिका सृजन करके अपने परिचय-दानमें एकदम मौन रहा है । मानो एक महान् दानीने सर्वस्व लुटाकर भी विज्ञापनसे बचनेके लिए अपनेको सब तरह छिपा लिया है। मदनपराजय और सम्यक्त्वकौमुदी का तुलनात्मक अध्ययन करने पर मैं इस परिणाम पर पहुंचा कि इन दोनों रचनाओंका लेखक एक ही व्यक्ति नागदेव होना चाहिए। मेरे निष्कर्ष के अाधार निम्न हैं । (१) दोनों रचनाओंमें पाया जानेव ला शैली-साम्य, (२) भाषा-साम्य, (३) उद्धृत पद्य-साम्य, (४) अन्तर्कथा साम्य और, (५) प्रकरण साम्य । शैली साम्य-जहां तक मदनपराजय और सम्यक्त्वकौमुदी की शैलीका सम्बन्ध है, दोनों ही रचनाएं पञ्चतन्त्रसे मिलती-जुलती श्राख्यानात्मक शैलीमें लिखी गयी हैं । यह अवश्य है कि सम्यक्त्वकौमुदी रूपकात्मक रचना न होनेसे उसमें मदन-पराजय जैसे रूपकोंका श्रात्यन्तिक अभाव है, परन्तु जिस प्रकार मदन-पराजय में पात्रोंकी उक्तियोंको समर्थ और प्रभावपूर्ण बनानेके लिए ग्रन्थान्तरोंके पद्योंको उद्धृत किया गया है और मूल कथाकी धाराको सशक्त तथा रोचक बनानेके लिए अन्य अतकथानोंकी संघटना की गयी है। उसी प्रकार सम्यक्त्वकौमुदी में भी उद्धृत पद्यों और अन्तर्कथाओंका यथेष्ट संग्रन्थन दिखलायी देता है। भाषा-साम्य-सम्यक्त्वकौमुदी और मदनपराजय में न केवल शैलीकी समानता है वरन् १ जैन ग्रन्थ कार्यालय हीराबाग बम्बईका संस्करण । ३७५
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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