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________________ वर्ली - अभिनन्दन ग्रन्थ बौद्धिक अहिंसाका विशुद्ध रूप स्याद्वाद, विश्वशान्ति समृद्धिका एक मात्र साधन अहिंसा और अपरिग्रह तथा स्वतन्त्रताका सर्वोत्कृष्ट स्वरूप कर्मवाद अथवा अनीश्वरवाद ये तीनों जैनधर्मकी असाधारण विशेषताएं हैं। इनका मूर्तिमान् उदाहरण मैं पूज्य श्री बाबाजी को मानता हूं ! फलतः मैं उनके चरणों में नत हूं । सागर ] (पं०) दयाचन्द्र, सिद्धान्तशास्त्री 卐 बड़ौत ] 5 5 श्रद्धेय वर्णीजी महोदय मेरे जीबनके सर्वप्रथम और सर्वोत्तम उपकारी हैं । (पं०) तुलसीराम, वाणीभूषण 卐 卐 சு पूज्यवर वर्णीजी भारतकी उन विभूतियों में से हैं जिन्होंने अहर्निश श्रविश्राम जन हित करनेमें अपने जीवनका क्षणक्षण विताया है । अध्यात्म प्रेमी होते हुए भी आपने जनताकी समस्त आवश्यक सेवाओं में योगदान दिया है । पथ बिचलितों को सुपथ पर लाना आपका व्रत है । वर्गीजीकी जीवन घटनाओंसे प्रत्यक्ष है कि श्राप बने हुए सन्त नहीं हैं बल्कि स्वभावतः साधुप्रकृति महात्मा हैं । वर्तमान समय में ज्ञान और चरित्र एक साथ नहीं रहते । भोले भाले त्यागी चरित्र धारण करते हैं और विद्वान दूसरोंके सूक्ष्म दोषोंकी प्रत्यालोचना करनेमें ही अपना समय निकाल देते हैं । निर्मल चरित्र धारण नहीं करते, परन्तु वर्णीजीने सम्यक् दर्शन, ज्ञान, चरित्र, तीनोंको एक ही साथ अपना कर त्यागियों तथा विद्वानों के लिए पुनीत पथ प्रदर्शित किया है । आपकी प्रगाढ़ देशभक्ति, सन् १९४५ में जबलपुर में आजाद हिन्द फौजके सैनिकों की रक्षार्थ आयोजित सभा में कहे गये "जिनकी रक्षा के लिए ४० करोड़ मानव प्रयत्नशील हैं उन्हें कोई शक्ति फांसीके तख्ते पर नहीं चढ़ा सकती, आप विश्वास रखिये; मेरा अन्तःकरण कहता कि आजादहिन्द सैनिकोंका बाल भी बांका नहीं हो सकता" शब्दोंसे स्पष्ट है । अपनी भगिनी पू० चन्दावाईजीको दत्त सरल सुबोध अनुभूत दृष्टान्त श्राज भी ज्योंके त्यों स्मरण हो आते हैं । 'कभी कभी भाव हिंसा होकर कर्मबन्ध हो जाता है परन्तु द्रव्यहिंसा नहीं होती वल्कि इसके विपरीत उस हिंस्य प्राणी का भला हो जाता है।' इस जटिल सिद्धान्तको आपने म० प्रा० में एक गृहस्थ पति-पत्नी रहते थे उनके एक पुत्र बड़ी प्रतीक्षाके पश्चात् उत्पन्न हुआ परन्तु चार वर्षका होने पर भी दैवयोगसे नहीं चल सकता था, दोनों पैर उसके जुड़े हुए थे । डाक्टर कहते थे कि बड़ा हो जाने पर श्रपरेशन होगा तब शायद ठीक हो जायेगे । पुत्रके इस रोगसे दम्पति चिन्तित रहते थे । एक दिन रात्रि में उनके घर में चोरोंने श्राक्रमण किया और खोज करने पर भी जब माल हाथ न लगा तब क्रोधित होकर छब्बीस
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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