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श्रद्धाञ्जलि
उस बालकको छत परसे नीचे गिरा दिया। माता पिता हाय हाय करने लगे, नीचे दौड़े बालकको उठाकर देखते हैं तो उसके पैर खुल गये हैं और जुड़ा चमड़ा फट गया है, बालक मजेसे चलने लगा ।" दृष्टान्त द्वारा हिंसक चोर भी पुण्यवान बालकका कुछ नहीं विगाड़ सके उन्होंने हिंसाके भाव करके अपना ही बुरा किया और हिंस्य बालकका भला । ऐसे सरल हितोपदेष्टा पूज्यश्री के लिए मैं करबद्ध श्रद्धाञ्जलि समर्पित करती हूं। बाला विश्राम, आरा]
(पं०) ब्रजवालादेवी जैन
पूज्य श्री १०५ सु० गणेशप्रसादजी वर्णीका ध्यान आते ही भरतेश वैभवम्' के यशस्वी लेखक रत्नाकर वर्णी मेरे मानस क्षितिजपर उदित होते हैं । वर्णीजीको यदि 'धरती सुत' कहें तो शायद उनके अनेक गुणोंका कुछ संकेत मिले ? कहां विन्ध्याटवीके अञ्चलमें जन्म, कहां साधारण शिक्षा, कहां वह निसर्गज सद्धर्मानुराग, कैसी वह ज्ञान पिपासा और दारुण महानिष्क्रमण तथा परिभ्रमण, कहां वह अनवद्य पांडित्य, कहां वह शिक्षा-संस्था-तीर्थ प्रवर्तन, कैसी अद्भुत लोकसंग्राहकता तथा सर्व-नेतृत्व
और फिर कैसा वह गांव, गांव झोपड़ी, झोपड़ीविहार । सचमुच यह वर्णी भी 'भारत वैभव निर्माता' वर्णी हैं । उनके चरणोंमें साष्टाङ्ग सप्रणाम वन्दना । शोलापुर ]
( पं० ) वर्द्धमान पार्श्वनाथ, शास्त्री, आदि
भूखेको रोटीकी प्राप्ति परम पुरुषार्थ-सिद्धि है । दारिद्रय तथा अज्ञान शत्रुत्रोंसे पदाक्रान्त वन्य बुन्देलखण्ड भूमिवासी हम लोंगोंकी आज शिक्षितोंमें गणना पूज्य श्री के ही कारण है । उन्होंने ज्ञानाञ्जन शलाकासे अज्ञान तिमिरान्ध हम लोगोंके नेत्र खोल दिये हैं, यह हमारे ऊपर निर्भर है कि हम उनसे केवल धन-मकान-स्त्री देखें या समाज तथा धर्म देखें । यदि दूसरे पक्षको ग्रहण कर सके तो 'तस्मै श्री गुरवे नमः' कहनेके अधिकारी हो सकें गे । सागर ]
(पं०) मूलचन्द्र बिलौवा
__पूज्यपाद वर्णाजी संसारके उन महापुरुषोंमें से हैं जिन्होंने जनताके उपकारके लिए अपने बड़ेसे बड़े ऐहिक स्वार्थका त्याग किया है । आपमें प्रारम्भसे ही ज्ञान निष्ठा और परोपकार वृत्ति आकण्ठ भरी हुई है । जैन समाजमें जो आज प्राचीन शिक्षाका प्रसार है जिस पर कि हमारी संस्कृतिका आधार है उसका बहुत बड़ा श्रेयोभाग आपको है।
जो भी सम्पर्कमें आया वह अन्तरंगमें मायाशून्यता, सत्यनिष्ठा, प्रकाण्ड पाण्डित्य, विद्वत्ताके
सत्ताईस