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________________ वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ पादका नाम जोड़ देनेसे स्पष्ट 'तिरुपादलिपुलीयुर' बनता है। तामिल पुराणोंमें' पादलि, पाटलि वन आदिके वर्णन भी नगरके अस्तित्वके ही समर्थक हैं । खण्डरोंमें मिले शिलालेख भी 'तल्लैत्यप तिरुपादलि पुलीयुर'' इसके समर्थक हैं । अप्पर तथा महेन्द्रवर्मनका धर्म परिवर्तन, फलतः जैनधर्मका भीषण दमन तथा जैन संस्कृति केन्द्रका विनाश अादि सिद्ध करते हैं कि दक्षिण पाटलिपुत्र किसी समय 'जैन जयतु शासनम्' की जय घोषसे अप्लावित था । इसकी पुष्टि आस-पासके ग्रामों में प्राप्त जैनधर्मायतन तथा निषिधकारों से भी होती है। फलतः यदि उक्त श्लोकका पाटलिपुत्र दक्षिण भारतका था तो संभवतः तोण्डामण्डलस्थ तिरु = श्री पादली = पाटली पुलि = व्याघ्रपाद युर=स्थान हो सकता है । फलतः उक्त विवेचन मनीषियोंके लिए साधक ही होगा। Dorae १. वी० जगदीश अय्यरका आरकाट जिला इतिहास, आर० सर्वे ० ई० पृ०६५। २. दन्तोक्ति है कि दक्षिण आर्काटके तिरुवन्नमल तथा तिरुक्कोरलूर में छः हजार मुनियोंकी निपिंधकाएं बनी थीं। ३२२
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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