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________________ स्वामी सन्तभद्र तथा पाटलिपुत्र हैं । पल्लव राजकाल में निर्मित विष्णुमन्दिर इनमें प्रधान तथा प्राचीनतम है । गैडिलम नदीके प्रवाह परिवर्तनने भी बहुतसे अवशेषोंको भूगर्त में सुला दिया है। मंडम ग्राम में विराजमान मूर्ति पहिले यहीं पड़ी थी । तामिल ग्रन्थोंके ? श्राधारपर सिद्ध है कि ई० सनके प्रारम्भसे राजा महेन्द्रवर्मन ( प्रथम ) के शैव होने तक दक्षिण पाटलिपुत्र एक समुन्नत नगर था जो कि वर्तमान 'तिरुवेदीपुर' हो सकता है । स्वयं शैष हुए अप्पर जैन साधुके सम्पर्क से महेन्द्रवर्मन शैव हुए थे । तथा मुनि व्याघ्रपादने पदरि (पालि ) वृक्ष के नीचे यहांपर शिवपूजा की थी फलतः इसका नाम पादरी ( पाटलि ) पुत्र पड़ गया था । कडलोरसे पन्द्रह मील दूर पनरुती नगरसे डेढ़ मीलकी दूरीपर 'तिरुवदीकरी स्थान है जो प्राचीन पाटलिपुत्रका उपनगर था । यहां 'गुणधर-इच्चरम' नामका एक मन्दिर है जो प्रारम्भमें जैनमन्दिर रहा होगा । यद्यपि इस समय गर्भगृह में विशाल शिवलिंग शालु का ( योनिपीठ ) में विराजमान है तथापि मन्दिरके बाहर नीमके • वृक्ष के नीचे रख दी गयी जैनमूर्ति मन्दिरके इतिहासकी और संकेत करती है। मूर्तिके खण्डित मुख, शिर तथा श्रासन बतलाते हैं कि मन्दिर किसका था । यद्यपि साढ़े तीन फीट ऊंची पद्मासन इस मूर्ति में चिन्ह तथा प्रशस्ति लेख नहीं हैं तथापि कलाकी दृष्टि से यह पल्लवकालीन प्रतीत होती है। उक्त मन्दिरसे कुछ फलांगकी दूरी पर 'विरतेश्वर' मन्दिर है । स्थूल उन्नत दीवालों तथा गोपुर युक्त इस मन्दिरके मध्य में एक सरोवर है तथा इसके भीतरी चक्रमें एक जैन पद्मासन अखण्डित मूर्ति रखी है । यह मूर्ति श्राकार प्रकारसे उक्त मूर्तिके समान है। यह वही मन्दिर है जहां प्रने जिन धर्म छोड़कर शिवधर्म स्वीकार किया था । ये जन्म से जैन थे धर्मसेन नामसे मुनि होकर अपने संघके श्राचार्य हुए थे । एक दिन 'तिरुनरुन कुण्ड' की यात्रार्थ जाते समय संघसे रुष्ट होकर लौटे और अपने परिवर्तन के साथ साथ महावीर मन्दिरको भी विरतेश्वर शैव मन्दिर बना दिया । इन जैन भग्नावशेषों तथा तामिल साहित्य से समृद्ध दक्षिण पाटलिपुत्रका अस्तित्व सिद्ध होता है जैसा कि टोण्डामण्डल, पोन्नारके विवेचन तथा वहां उत्पन्न वीर, विद्वान, आदिके वर्णन से स्पष्ट है" । तथा यह श्रादिसम्राट चन्द्रगुप्तमौर्य की राजधानीके समान ही सम्पन्न बतायी गयी है । देखना यह है कि क्या तिरुपादरीपुलीयूरका पाटलीपुत्र हो सकता है ? 'पादरी' वृक्ष के अनुसार इसका नाम पड़ा था । तथा पुली = = व्याघ्र और युर = स्थान शुद्ध तामिल हैं । फलतः उक्त घटनाओं से मुनि व्याघ्र १. एपी० ३० भा० ६ पृ० ३९१ । २. तामिल पेरिय, स्थल तथा तेवारम पुराण | ३. प्रा० ए० चक्रवतीकी तिरुवल्लुवर कुरलकी भूमिका । ४. तामिल 'पाटलियर पुराण' ह० लि० ग० सं० ११३६/५ । ५. पारिजातकाचल महात्म्य, काञ्चीपुराण, तिरुपादिपुलियर कालाबम्ब, आदि ४१ ३२१
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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