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________________ श्रद्धाञ्जलि श्रीमान् त्यागी गणेशप्रसाद जी वर्णीका आत्मा पवित्र है। धर्मरस से और धर्मप्रभावनाकी सद्भावनात्रों से परिप्लुत है । आत्माकी शुद्धि-विशुद्धि उनका अटल ध्येयविन्दु रहा है। लौकिक आशा आकांक्षा उनके चित्तमें स्थान पाती नहीं । पूर्व जीवन के विषयमें जो जो बातें सुनने को मिली सुनकर उनकी उदार हृदयताका, धर्मभावनाओंका परिचय प्राप्त कर हृदयको सन्तोष ही हुआ । लोभ और प्रलोभनोंकी अधिकतर सामग्रीके बीचमें घिर जाने पर भी अपनी अटल आत्म विशुद्धि और आत्मैकाग्रभावनाके बल पर ही आत्मा अधिकाधिक विशुद्धिको प्राप्त हो सकता है । लौकिक दृष्टि से कहा जाय तो "आध्यात्मप्रवणता" ही वर्णीजीका अन्तश्चर प्राण है और समाज में सद्धर्म के प्रचारकी जागृत भावना यह बहिश्चर प्राण है। धर्मोन्नतिके साधनों और धर्मायतनोंके निर्माण में उनके मन-वचन-काय सदा ही लगे रहे हैं । श्री वर्णीजी जैसे श्रद्धासे निर्मल, ज्ञानसे प्रभावशाली और चारित्रसे विकसनशील भव्यात्मा बिरल हैं। यह हार्दिक कामना है कि वर्णीजी चिरकाल के लिए जीवित रहें। कारंजा ] -(क्षुलक ) समन्तभद्र पूज्य गुरुवर्य के किन किन गुणोंका स्मरण कसं ? भक्तिके अतिरेकसे भावोंमें पूर आ रहा है। उनके वचन मेरे लिए पागम हो गये हैं। उनका संकलन और प्रचार मेरे जीवनकी साध बन चुके हैं। मैं उनके चरण चिन्हों पर चल सकू यही हार्दिक भावना है। जबलपुर]-- -(ब्र. ) कस्तूरचन्द्र नायक पूज्य वणोंजी आजके जैन शलाका-पुरुष हैं। आप सबसे बड़े समयज्ञ हैं अतः आप सर्वप्रिय और मान्य हैं । सरल जीवन और “जान दो अपनेकोका करने” उन्हें विरक्त जीवनकी मूर्ति बना देते हैं । 'जियो और जीनो दो' तो आपके जीवनका मूलाधार है। मैं उनसे अत्यन्त उपकृत हूं एक्कीस
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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