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________________ वर्णी-अभिनन्दन ग्रन्थ अतः निकटका होनेके कारण मेरे द्वारा उनका गुणगान कैसा ? वे चिरायु हों इसी भावनाको भाता हुआ उनके चरणों में प्रणाम करता हूं। गया ] -(ब्र.) गोविन्दलाल जिन्होंने जन्मसे ही उदासीन रहकर त्यागपूर्ण जीवन बिताया है, शिक्षा और ज्ञान प्रधान त्यागका मार्ग चलाया है, पैदल ही चलकर गांव गांव जाकर अज्ञान और कलहमें पड़ी जनता का उद्धार किया है उनके विषयमें मैं क्या कह सकता हूं क्योंकि मेरी विरक्ति और ज्ञानवृत्तिके भी तो वही वर्णीजी मूलस्रोत हैं। बरुआसागर ] --(भगत ) सुमेरचन्द्र 卐 मुझमें जो कुछ त्याग और विवेक है उसके कारणका विचार करने पर वर्णीजीकी सरल मूर्ति सामने आ जाती है । अतः उनके चरणोंमें प्रणाम करनेके सिवा कुछ और कहना धृष्टता होगी। रेशन्दीगिरि ]-- ___-(ब्र.) मंगलसेन तुच्छ 卐 श्री वर्णीजी की मेरे निवास स्थान जबलपुरपर बहुत वर्षों से कृपा रही है। परन्तु मुझे उनके दर्शन करने का अवसर १६४५ में जेलसे निकलनेके पश्चात ही प्राप्त हुआ। उनकी विद्वत्ता तो असंदिग्ध है ही, परन्तु मुझ पर उनके सरल स्वभावका अत्यधिक प्रभाव पड़ा। वृद्धावस्थाको अंग्रेजीमें लोग द्वितीय बाल्यकाल कहते हैं, परन्तु इसका कारण उस अवस्था में उत्पन्न होने वाली शारीरिक तथा मानसिक दुर्बलता है। परन्तु वर्णीजी मुझे बालकके समान भोले लगे, अपने चरित्र-बल के कारण । अपने ग्रन्थ 'कृष्णायन' में मैंने जीवन्मुक्तका जो वर्णन किया है उसकी निम्नलिखित चौपाइयां मुझे वर्णीजी को देखते ही याद आ जाती है जिमि वितरत अनजाने लोका, सुमन सुरभि, तारक आलोका, तिमि जीवन-क्रम तासु उदारा, सौख्य चतुर्दिक वितरन-हारा । नागपुर - (पं०) द्वारका प्रसाद मिश्र, मंत्री, विकास तथा निर्माण, मध्यप्रान्त बाईस
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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