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________________ तुम्हारा ही वह पौरुष धन्य ! श्री हुकमचन्द्र बुखारिया, 'तन्यय' सम्प्रति युग हे एक श्रेष्ठतम पुरुष वृद्ध ! मुट्ठी भर दुर्बल हाड़ोंके हे स्तूप !! जियो तुम अविचल जब तक -- भलै सुख्यात या कि बदनाम, दूर क्षितिज पर तप्त दिवाकर, स्वार्थमय या कि परम निष्काम, शीतल शशि, नक्षत्र अनेकानेक— प्रकाशित हैं जगमग जगमग ! माना विकृत प्रति या कि पूर्ण अभिराम ! सहन गम्भीर वही इतिहास किन्तु शनैः शनै भयभीत अत्र तक इतिहास हुआ जाता यह सोच-विचार बहन करता आया है भारअनेकों का-लघु या कि महान - कि निकटागत में तुम जब प्राप्त उन्नीस उसे होओ गे ही अनिवार्य, संभालेगा तब कैसे भार तुम्हारा वह १ हे गहन महान् ! अनेकों शिशु भोले सुकुमार, शिक्षित बने भूमिके भार,
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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