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________________ पौराणिक जैन इतिहास पुत्र होते थे । फलतः शीघ्रतासे बच्चे बदल दिये जाते थे जिन्हे निर्दय कंस मसल कर फेंक देता था। सातवीं सन्तान कृष्णजी थे जिन्हे नन्दकी धर्मपत्नी यशोदाकी लड़कीके साथ बदला गया था। तथा कंसने भविष्य वाणीको मिथ्या मानकर लड़कीको नहीं मारा था। गोपाल बालिकाओं के साथ क्रीडा, पूतना तथा कंसके लोगोंको मारना तथा कंसको मारकर उग्रसेनको पुनः राजा बनानेकी कथा समान है। उग्रसेनकी पुनः राज्यप्राप्तिके अवसरपर श्रीकृष्णजीका प्रथम विवाह कंसकी बहिन सत्यभामाके साथ हुआ था। समस्त विशेषताओंका वर्णन न करके इतना लिखना पर्याप्त है कि जैन कृष्णचरितकी सबसे बड़ी विशेषता अरिष्टनेमिका चरित्र है जिसका ऊपर उल्लेख कर आये हैं । कौरव-पाण्डव युद्ध-का जैन वर्णन वैदिक महाभारत कथासे बहुत विलक्षण है । जैन कथानुसार यह युद्ध प्रधानतया कौरव-पाण्डव प्रतियोगिता ही न थी। क्यों कि कंसकी विधवा जीवद्यशाने अपने पिताके सामने जाकर अपनी दुःख कथा कही । फलतः प्रबल प्रतापी जरासंधने द्वारका साम्राज्यके स्वामी कृष्ण तथा यादवोंके प्रतिकूल युद्धकी तयारी की । इस युद्ध में शिशुपाल, कौरव, आदि जरासंधके पक्षमें गये तथा पाण्डव आदि श्रीकृष्णके पक्षसे लड़े । फलतः यह युद्ध जरासंध-कृष्ण युद्ध था तथा कृष्णजीके हाथ ही जरासंध मरा था। द्वारका दहन तथा कृष्णमृत्यु-जब अरिष्टनेमिको कैवल्य प्राप्ति हो चुकी तथा दिव्यध्वनि ( उपदेश ) खिर रही थी तब द्वीपायन मुनि द्वारकाको नष्ट करेंगे तथा श्रीकृष्णजी अपने वैमातुर भाई जराकुमारके हाथसे मरें गे' यइ सुनते ही सब स्तब्ध रह गये। शायद मदिरापान द्वारकाके नाशका कारण हो अतः कृष्णजीने मदिरा पान निषेध करा दिया था, द्वीपायन मुनि भी दूर वनमें जाकर तप करने लगे थे । "मैं अपने भाईको मारूंगा । कदापि नहीं, मेरे जीते जी कोई भैयाका बाल भी न छू सकेगा।" ऐसा निर्णय करके सशस्त्र जराकुमार द्वारकाके चारों ओर वनोंमें पहरा देने लगे थे । वैशाखके तापसे त्रस्त शाम्बका सहचर कादम्बरी ( जहां द्वारकाकी मदिरा भरकर फेंक दी गयी थी) के पास पहुंचा और उसने पानीके स्थान पर खूब मदिरा पी ली। तथा अपने स्वामीके लिए भो ले गया । मदिरा पीते ही शाम्ब इतना लोलुप हुआ कि दोनों गुफामें गये और इतनी अधिक पियो कि मूर्छित हो गये । वहीं द्वीपायन तप कर रहे थे शाम्ब ने इन्हें देखा और बोला 'यही हमारी द्वारका का नाश करेगा ?' यह सुनते ही यादव कुमारोंने उनपर आघात किये और वे मृतवत मूर्छित हो गये। यादव कुमारोंसे यह दुःखद समाचार सुनते ही कृष्ण तथा बलभद्र मुनिराजके पास गये, क्षमा याचना की, किन्तु मृत्युकी पीड़ामें मुनि शान्त न हो सके मुखसे निकल पड़ा "तुम दोनोंके अतिरिक्तकोई नहीं बचे गा, द्वारका जलेगी, सब नष्ट हो जायगे।" उदास मनसे कृष्णजी लौटे घोषणा कर दी कि सब पवित्र जीवन व्यतीत करें । स्वयं भी रैवतकपर जाकर भ० नेमिनाथका प्रवचन सुनते थे। २८९ ३७
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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