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________________ वर्णी-अभिनन्दन ग्रन्थ वर्षों घूमते तथा सैकड़ों विवाह करते हुए एक दिन रुधिर राजाके नगरमें पहुंच कर मृदंगवादकके वेशमें उनकी पुत्री रोहिणीकी स्वयंवर सभामें जा खड़े हुए। रोहिणीने इन्हें हो वरण किया फलतः समुद्रविजयके नेतृत्वमें अज्ञात कुलशील नीच युवकसे युद्ध छिड़ा किन्तु तुरन्त ही समुद्रविजयने इन्हें पहिचान लिया और युद्ध भ्रातृमिलनमें परिवर्तित हो गया । कस-की कथा बड़ी रोचक है । जब वह अपनी माता धरिणीके गर्भ में था तब उसे अपने पति उग्रसेनका मांस खानेकी इच्छा हुई। फलतः बालककी घातकता स्पष्ट हो गयी। इसीलिए उसके उत्पन्न होते ही उसे मृतक कह कर नदीमें बहा दिया गया। इस पेटीको एक सेठने उठाया और निःसन्तान होने के कारण बालकको बड़ा किया; जो कि अत्यन्त उदण्ड एवं दुष्ट था अतः वह कुमार वासुदेवकी सेवामें रख दिया गया जहां उसकी कुमारसे बड़ी प्रीति हो गयी तथा कुमारके साथ उसने अस्त्रविद्या एवं रणकला सीखी। ___ जरासङ्घ-अपने समयका प्रधानतम राजा था उसका प्रत्येक शासन सर्वत्र मान्य था। एक दिन उसने राजा समुद्रविजयको सिंहपुराधीश सिंहरथके हाथ पैर बांधकर अपनी सभामें उपस्थित करनेकी आज्ञा दी और यह भी घोषित किया कि जो सिंहरथको बन्दी बनाकर, लाये गा उसे अपनी पुत्री जीवद्यशा तथा यथेच्छ राज्य दूंगा। समुद्रविजयने युद्धकी तैयारी को किन्तु इस युद्धको वासुदेवने करना चाहा अतएव कंसको साथ लेकर उन्होंने आक्रमण किया और घोर संग्राम के बाद सिंहरथको बन्दी बनाकर जरासंधकी राजसभामें भेज दिया। किन्तु उसकी मातृ-पितृकुल विघातिनी जीवद्यशासे विवाह करनेको तैयार न हुए । यतः कंसने सिंहरथके हाथ पैर बांधे थे अतः उससे विवाह हो सकता था। किन्तु श्रेष्ठिपत्र कंससे विवाहकी बात सुनते ही जरासंघ जल उठता । इस द्विविधाके समय ही सेठने कंसके वास्तविक माता पिताका परिचय दे दिया। फलतः जीवद्यशा उससे व्याह दी गयी। किन्तु कंस अपने माता पिता पर अत्यन्त कुपित हुआ और मगधकी सेनाको सहायतासे उन्हें हरा कर तथा बन्दी बनाकर स्वयं मथुराका राजा बन बैठा। वह अपने मित्र वासुदेवको कभी न भूल सका। उसके अाग्रह तथा विनयसे उन्होंने उसकी ककेरो बहिन देवकीसे विवाह किया था। कंसने विवाहोत्सव बड़ी साज सज्जाके साथ मनाया था। भोजमें मदिराकी नदियां बह रही थीं । यथेच्छ मदिरापान करके सब उन्मत्त थे ऐसी अवस्थामें ही जीवद्यशाने अपने मुनि देवरका हाथ पकड़कर कामाचारके लिए कहा । क्रोधावेशमें मुनिके मुखसे निकल गया कि इस भ्रष्ट विवाहकी सन्तान हो कंसको मारे गी। इसी कारण चेतन होने पर कंसने वसुदेवजोसे अपने बालक उसे देनेकी प्रार्थना की थी जिसे सरल वासुदेवने स्वीकार कर लिया था। देवकी सन्तति-- देवकीके लगातार छह पुत्र हुए । तथा महितपुरकी सेठानी सुलसाके भी देवकीके साथ मृत २८८
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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