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________________ वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ जैन नारायण महाशक्ति शाली मानव है जो पृथ्वीके तीन खंडोंपर ही शासन करता है तथा मुनि दीक्षा विना लिये ही राज्य करता, करता मर जाता है तथा उत्तर भवोंमें मुक्त होता है । जैन मान्यतानुसार त्रिपृष्ट, द्विपृष्ट, स्वयंभू , पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुण्डरीक, दत्त, लक्ष्मण तथा कृष्ण ये नौ नारायण हुए है इनमें लक्ष्मण और कृष्ण वैदिक मान्यताके प्रधान पुरुष हैं अतः उनका ही यहां विवेचन करेंगे। __ जैन दृष्टि से नारायण मनुष्य है, वैदिक दृष्टिमें वह परम ब्रह्म है तथा पापरत मानव जातिका उद्धारक है । 'नार' तथा 'नारायण' दोनों शब्दोंका अर्थ 'मनुष्य पुत्र' है। इस दृष्ठिसे हम 'जीससकी 'मनुष्य पुत्रता' के निष्कर्षपर पहुंचते हैं "किसी मन्वन्तरमें नारायण नर ऋषिके पुत्र होते हैं ।" यह मान्यता भी जीससके श्राख्यानकी समकक्ष है क्योंकि 'मनुष्य पुत्र होकर भी वह पतिप्त मानवताका उद्धारक ईश्वर था। फलतः नारायणके शब्दार्थ के विषयमें जैन, वैदिक तथा ईसाई एकमतसे ही हैं। प्रति-नारायण नारायणोंके शत्रुओंको प्रतिनारायण नाम दिया गया है। प्रत्येक प्रति-नारायण, नारायणके चक्रसे मरता है, मरकर नरक जाता है और अनेक भव बाद मुक्ति प्राप्त करता है । अश्वग्रीव, तारक, मेरक, मधु, निशुंभ, बला, प्रहलाद, रावण तथा जरासंध नौ जैन प्रतिनारायण हैं । इनमें से कुछके कुकर्मोंके श्राख्यानसे वैदिक शास्त्र भरे पड़े हैं । अश्वग्रीव, मधुकैटभ, तारक, निशुंभ, बलि आदिके विषयमें जहां वैदिक तथा जैन कथाग्रन्थ सहमत हैं वहीं वे प्रहलादके विषयमें भिन्न हैं । वैदिक मान्यतामें प्रह्लाद भक्ति और अाराधनाकी मूर्ति एवं प्रधान नारायणभक्त हैं । रावण और जरासंध तो प्रमुख प्रतिनारायण हैं ही। बलभद्र-- जैन बलभद्र नारायणोंके बड़े वैमातुर भाई होते हैं । इनका नारायणों पर अपार स्नेह होता है। ये दीक्षा धारण करते हैं और मरकर उच्चतम स्वर्ग या मोक्ष पाते हैं । अचल, विजय, भद्र, सुप्रभ, सुदर्शन, आनन्द, नन्दन, पद्म, ( राम ) तथा राम ( बलभद्र ) जैन मान्यताके नव-बलभद्र हैं । नव-बलभद्रोंमेंसे पद्म (श्रीराम ) तथा बलदेव प्रमुख हैं । वैदिक पुराणोंके तो ये प्रधान नायक ही हैं। ___ऊपरके संक्षिप्त वर्णनसे ऐसी आशंका हो सकती है कि जैन नारायण, प्रतिनारायणादि चरित्र रामायण महाभारतके रूपान्तर मात्र हों गे । किन्तु वस्तु स्थिति ऐसी नहीं है। वैदिक साहित्यमें राम-कृष्ण, नारायण तथा लक्ष्मण-बलदेव अनन्त हैं। जयदेव, अादिने बलदेवजीको भी नारायण लिखा है, इस अाधारसे जैन बलभद्र-नारायण, अदिके क्रमकी पुष्टि होती है। इस प्रकार पर्याप्त समता होते हुए भी दोनों वर्णनोंमें बहुत वैलक्षण्य भी है जैसा कि निम्न वर्णनसे स्पष्ट होगा। ही नारायण कहलाता है। अथवा नर प्रकृतिसे परे पच्चीसवां तत्त्व है, नरकी कृति 'नार' कहलाता हैं अतएव सारी सृष्टिका आधार होने के कारण भगवान् नारायण है। २८२
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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