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________________ पौराणिक जैन इतिहास पद्मचरित-- पद्म ( राम ) चरित और वाल्मीकि रामायणमें बहुत समता है । पद्म जन्म, शिक्षा-दीक्षा, विवाह, अभिषेक तथा वनवासके वर्णनोंमें विशेष अन्तर नहीं है । सूर्पणखाको चन्द्रनखा कहा है । इसकी श्रासक्तिको लेकर खरदूषणसे युद्ध होता है । रावण वनमें आता है और सोताके रक्षक भाईको दूसरे भाईकी विपत्तिका समाचार देकर छल करता है । सीतापहरण, अशोक वृक्षके नीचे रखना, सुग्रीवका उद्धार, सुग्रीवका भोगरत होना, लक्ष्मणका क्रोध, हनुमानद्वारा सीताका चूडामणि लाना, हनुमान राक्षस युद्ध, इन्द्रजीत की नागपाशमें बंधना, भारी हानि करके वापस आना, विभीषणका रावणको उपदेश, विभीषण-रामसन्धि, युद्ध, लक्ष्मण पर शक्ति प्रहार तथा अन्तमें लक्ष्मण द्वारा रावणका मारा जाना, विभीषणको लंकाका राज, तीनोंका अयोध्या वापस आना, रामका सुराज्य, जनतामें सीताका प्रच्छन्न अपवाद, सीतात्याग, लवकुश जन्म, पत्रों द्वारा राम-लक्षमण पराजय, माताकी पवित्रताका ख्यापन, सीताकी अग्निपरीक्षा. आदि समान बातें हैं । वैलक्षण्य-- जैन वर्णनानुसार दशरथ-पुत्र तथा जनक-पुत्रीको रावणके पतनका कारण किसी मनिने बताया था। फलतः उसके भीत होनेपर विभीषणने दोनों राजाओंको निःसन्तान मार देनेका वचन देकर उसे साहस दिलाया था । नारदसे यह समाचार पाकर दोनों राजा जंगलमें चले गये थे । राजा अत्यन्त अस्वस्थ हैं कहकर शय्या पर उनकी मूर्तियां लिटा दी गयी थीं जिनके शिर विभीषण द्वारा भेजे गये हत्यारोंने काट कर रावणके सामने उपस्थित कर दिये थे। राजा जनकके युगल सन्तान हुई थी । इनमेंसे लड़केका पूर्वभवका वैरी उसे चुरा ले गया था। अपने कुकर्मका ध्यान आते ही उसने लड़केको रथनू पुरके राजा चन्द्रगतिके यहां छोड़ दिया । और इन्होंने भामण्डल नाम रखकर अपनी सन्तानके समान उसे पाला था। सीताके सौन्दर्य की चर्चासे यह आकृष्ट था अतः स्वयंवरमें रामको सफल सुनकर उनसे लड़ने आया, किन्तु अपना वास्तविक सम्बन्ध स्मरण करके बहिनके विवाह में सानन्द सम्मिलित हुआ था। लक्ष्मणजीने वनवासमें सिंहोदरको हराकर उसके राज्यका आधा भाग जिनभक्त वज्रकर्णको दिया था। नलकूबर नरेश बालखिल्यकी भीलोंसे रक्षा की थी। बालखिल्यकी पुत्री वनमाला उनसे प्रेम करने लगी थी। राजा पृथ्वीदेवकी पुत्री कल्याणमालाको आत्महत्यासे बचाया तथा अनेक विवाह किये। हनूमानजीका श्रीशैल नामसे उल्लेख है। तथा इन्हें कामदेव अर्थात् सुन्दर एवं सबल पुरुष बताया है । दशरथके वरदानोंकी कथा भी रोचक है । रावणके भयसे वनवासमें घूमते हुए दशरथ केकय २८३
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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