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________________ पौराणिक जैन इतिहास भाजन, आदि जीवनपयोगी वस्तुएं कल्पवृक्षोंसे यथेच्छ मात्रामें प्राप्त करते हैं । तृतीयकाल सुषमा-दुषमाके अन्तमें कल्पवृक्षोंकी वदान्यता घटती है, श्राकाशमें सूर्य चन्द्र दिखते हैं, क्योंकि कल्पवृक्षोंका उद्योत कम हो जानेके कारण सूर्य-चन्द्रके प्रकाश दिखने लगते हैं । इन दोनों प्रकाश पुञ्जोंको देखते ही उस युगके लोग सहज ही भीत हो जाते हैं। तब एक 'प्रतिश्रुत' महापुरुष भीत लोगोंको उक्त ज्योतिष्क देवोंका रहस्य समझाते हैं । फलतः जनका भय विलुप्त हो जाता है और इस प्रकार प्रतिश्रुत प्रथम कुलकर होते हैं । कल्पवृक्षोंका तेज क्षायमाण था अतः श्राकाशमें तारे भी दिखने लगे तब द्वितीय कुलकर सम्मतिने समस्त ज्योतिष्कोंके विषयमें आश्चर्य-चकित जनको समझाया । यही सन्मति ज्योतिष विज्ञानके प्रतिष्ठापक थे । तृतीय कुलकर क्षेमकरने उस समयके जनको पशुत्रों तथा हिंस्र जन्तुओंसे दूर रहने तथा उनका विश्वास न करनेका उपदेश दिया। कल्पवृक्षोंके क्रमिक विलयके कारण पशुओं तथा जन्तुत्रोंकी घातक वृत्ति अधिकतर स्पष्ट होती जाती थी। आपाततः इनसे अपनी रक्षा करनेके लिए चतुर्थ कुलकर क्षेमंधरको लाठी, आदि अस्त्र धारण करनेकी सम्मति देनी पड़ी। कल्पवृक्षोंकी दातृ शक्ति वेगसे घट रही थी फलतः जीवनोपयोगी वस्तुओंको प्राप्त करनेके लिए लोगोंमें कलह होने लगी अतः पञ्चम कुलकर सीमंकरने कल्पवृक्षोंकी व्यक्तियोंकी अपेक्षा सीमा निश्चित कर दी । अब कल्पवृक्षों की शक्ति नष्टप्राय थी अतः षष्ठ कु० सीमंधरने वृक्षों की सीमा सुनिश्चित कर दी ताकि जीवनोपयोगी वस्तुओं के लिए पारस्परिक कलह न हो। सप्तम कु० विमलभानुने जनको हाथी, घोड़ा, ऊंट, अादि पालकर अपने काममें लानेकी शिक्षा दी । भोगभूमिके नियमानुसार अबतक सन्तान उत्पन्न होते ही पितर मर जाते थे किन्तु अष्टम कु० चक्षुष्मान्के समयसे वे सन्तानोत्पत्तिके बाद कुछ समय तक जीवित रहने लगे । इससे लोग घबड़ाये फलतः कुलकरने सन्तान रहस्य समझाया। नवम कु० यशस्वानने सन्तानको आशिष देना, दशम कु० अभिचन्द्रने शिशुपालन तथा ग्यारहवें कु. चन्द्राभने शिशुपालन विधिका पूर्ण विकास किया। नदी, समुद्र, आदि पार करनेके लिए नौका तथा ऊंचे पर्वतादि पर चढ़नेके लिए सीढ़ियां बनानेकी शिक्षा मरुदेव बारहवें कु० ने दी थी । तेरहवें कु० प्रसेनजितने विवाह प्रथाका सूत्रपात किया तथा अन्तिम कु० नाभिरायके समयमें कल्पवृक्ष सर्वथा लुप्त हो गये । भोगभूमि कर्मभूमि हो गयी थी । जीवनकी आवश्यकता पूर्तिको लेकर भीषण समस्याएं खड़ी हो गयी थीं लोग श्रम करना नहीं जानते थे फलतः नाभिरायने उन्हें धान, आदिका उपयोग बताया और अन्य कामोंकी शिक्षा दी । यह भी बताया कि सद्यःजात शिशुओंका नाभ कैसे काटना। वस्तुत्रों के गुण दोष बताये। मिट्टीके बर्तन बनाकर उन्हें पकाना सिखाया । इनकी धर्मपत्नी मरुदेवी थीं जिनके गर्भसे ऋषभदेव उत्पन्न हुए थे। दार्शनिक विवेचन क्या कुलकरोंके उक्त वर्णनसे कुछ सैद्धान्तिक निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं ? सर्वप्रथम सामाजिक परिणाम तो यह हो सकता है कि जैन शास्त्र अाधुनिक चिन्ता-कष्ट बहुल संसारके पहिले मौलिक सुखमय २७१
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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