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________________ कुण्डलपुर अतिशयक्षेत्र जीर्णोद्धारका संकल्प किया। एक सर्वविश्रुत किंवदन्तीके अनुसार उसका स्वप्न पूर्ण होनेका समय तब आया जब औरंगजेबकी सेनाकी पकड़से भागकर वीर बुन्देला छत्रसाल खण्डहरोंमें छिपनेके लिए यहां आया । यहां रहते हुए उसे केवल मानसिक शान्ति ही नहीं मिली, किन्तु उसकी अात्मा एक विलक्षण शक्तिसे भरपूर हो गयी। अतः जब वह वहांसे चला तो उसने यह प्रतिज्ञा की कि यदि मैं मुगल साम्राज्यके चंगुलसे अपनी मातृ-भूमिको स्वतंत्र करनेके अपने प्रयत्नमें सफल हो सका तो मैं इस विशाल मन्दिरका पुनर्निर्माण ही नहीं कराऊंगा; बल्कि इसकी प्राचीन कीर्ति और वैभवको भी पुनः स्थापित करूंगा। कुछ वर्षों के बाद मुगल सम्राटको छत्रसालसे पराजित होना पड़ा। छात्रसालने अपने खोये हुऐ प्रदेशोंको पुनः प्राप्त किया । बड़े बाबाकी मूर्तिके सामने उसने जो प्रतिज्ञा की थी उसे वह भूला नहीं। अतः उसने उस पवित्र कर्तव्यको पूरा करनेके लिए राज्यके खजानेको खोल देनेकी अाज्ञा दी। जब महाराज छत्रसाल राजकीय ठाटबाटके साथ मन्दिरको देखनेके लिए पधारे तो एक बार पुनः प्राचीन इतिहासका नवनिर्माण हुआ । मन्दिरका पुनर्निर्माण हो चुकनेपर वि० सं० १७५७ में माघसुदी १५ को सोमवारके दिन महाराज छत्रसालने बड़े बाबाकी विशाल मूर्तिका पूजन किया । और मन्दिरके खर्चके लिए बहुत सा द्रव्य तथा सोने चांदीका सामान दिया । उनका दिया हुआ पीतलका एक बड़ा थाल (कोपर) मन्दिरके भण्डारमें आज भी सुरक्षित है। छत्रसालकी इच्छाके अनुसार ही इस स्थानका नाम बदल कर 'कुण्डलपुर अतिशयक्षेत्र' और तालाबका नाम 'वर्धमान-सागर' रक्खा गया। तबसे इस मन्दिरकी ख्याति दूर दूर तक फैलती ही गयी है। इस ऐतिहासिक घटनाकी स्मृतिमें प्रति वर्ष माघसुदी एकदशी से पूर्णिमा तक एक बड़ा मेला भरता है और बड़े बाबाका दर्शन करनेके लिए लाखों लोग सविशेष जैनी एकत्र होते हैं ।
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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