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________________ प्राचीन सिंधप्रान्तमें जैनधर्मश्री अगरचन्द्र नाहटा भारतके ग्राम, नगर, जनपद, श्रादिका इतिहास अब भी अन्धकारमें है। जैनधर्मके प्रचारक साधुगण सदा पैदल घूमते रहते थे फलतः उन्हें देशके कोने कोनेका सक्षात् परिचय रहता था । फलतः उनकी पट्टावलियां, विविध प्रशस्तियां, आदि प्राचीन भारतके भूगोलको तैयार करनेमें विशेष साधक हैं । यही दृष्टि इस लेखकी प्रेरक है। जैनधर्ममें कई सम्प्रदाय हैं, प्रत्येक सम्प्रदायमें अनेक गच्छ, शाखा, आदि हैं । फलतः यहां केवल सिन्धप्रान्त और उसमें भी केवल 'खरतरगच्छ' को लेकर सामग्री संकलित की है। भ० महावीरका समकालीन सिन्ध-- भारतकी प्रसिद्ध नदियां गंगा-सिन्धुको जैनशास्त्रोंमें शाश्वत कहा है। इनकी इतनी प्रधानता थी कि सिन्धुके किनारे बसा प्रान्त ही सिन्धु हो गया था तथा ग्रीक आक्रमणकारियोंने तो पूरे भारतको ही इस नदीके नामानुसार पुकारना प्रारम्भ कर दिया था। पन्नवणा सूत्रमें दिये आर्य देशों में 'सिन्धुप्रान्त' का भी नाम है । इसकी राजधानी वीतभयपत्तन (भेहरा) थी। भगवान महावीरके सययमें इसका शासक उदयन था । जिसकी पटरानी पद्मावतीके अतिरिक्त प्रभावती, आदि अनेक रानियां थीं। उसके प्रभावतोसे अभीचिकुमार नामका पुत्र उत्पन्न हुआ था। उदयनके राज्यमें सिन्धु, सौवीर, आदि सोलह जनपद तथा ३६३ नगर थे। महासेन, आदि दश मुकुटधारी राजा उसके सामन्त थे । उदयन जैन श्रमणोंके उपासक थे । एकबार पौषधशालामें रात्रि जागरण करते समय उनके मनमें आया 'वह देश धन्य है जहां वीर प्रभुका विहार हो रहा है। मेरे वीतभय नगरमें पधारें तो मैं भी वैयावृत्य करूं । चम्पामें विराजमान वीरप्रभुके दिव्यज्ञानमें उक्त अभिलाषा झलकी और समवशरण सिन्धकी राजधानीमें जा पहुंचा। राजा विरक्त हुअा, पुत्रका राज्याभिषेक करना चाहा, विचार आया राज्य पाकर पुत्रभोग विलासमें पड़ जायगा इस प्रकार मैं उसके संसार भ्रमणका निमित्त बनूगा । अतः अपने भानजे केशरी १---जैन साहित्य विशाल है अतः मेरा वर्णन एक सम्प्रदाय विशेषके साहित्यका आश्रय लेकर है। २-श्री भगवतीसूत्र शतक १३, उद्देश ६ । २५९
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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