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________________ ग्वालियरका तोमरवंश और उसकी कला मृगयाको गए । उन्होंने एक अपूर्व सुंदरीको जंगली भैंसोंको परास्त करते देखा । अद्भुत रूप और अपार बलकी उस मूर्तिको देखकर महाराज उसपर मोहित हो गये और उसको रानी बनाने का संकल्प किया । उस गूजर-कन्याका नाम मृगनयना था । उसके लिए गूजरी महल पृथक् बनवाया गया और उसकी इच्छानुसार उसके ग्राम राईसे उसके महल तक पानीका नल लगवाया गया । संगीत प्रेम महाराज मानसिंह संगीतके भी बहुत प्रेमी थे । इनके काल में 'मानकुतूहल' नामक एक संगीत इससे ज्ञात होता है कि 'ध्रुपद' का अविष्कार इन्हीं महाराजने किया । इनके समय प्रसिद्ध गायक इनकी सभा में एकत्रित हुए थे और उनकी सलाह से ही यह ग्रंथ ग्रंथ की रचना हुई। समस्त भारत देश के लिखा गया था । चित्र - ( मान ) महल - मानसिंह द्वारा निर्मित 'चित्रमहल' जिसे अब 'मानमंदिर' कहते हैं हिन्दू स्थापत्यकलाका ग्वालियर में ही नहीं, सम्पूर्ण भारत में अप्रतिम उदाहरण है । मध्यकाल के भवनों में या तो मन्दिर मठ प्राप्त होते हैं या अत्यंत ध्वस्त भवन प्राप्त हुए हैं। राजपूतोंके जो प्रासाद मिलते भी हैं वे मुगलोंके समकालोन या उनके पश्चात् के होनेके कारण उन पर मुगल- कलाका प्रभाव स्पष्टतया दृष्टिगोचर होता है । यह पूर्व- मुगलकालीन राजमहल ही एक ऐसा उदाहरण है जो विशुद्ध भारतीय शैलीमें बना है और निश्चय ही जिसने मुगल स्थापत्य कलाको प्रभावित किया है । इस महलको सजाने के लिए अत्यन्त सुंदर उत्कीर्णन एवं चित्रकारीका उपयोग किया गया है । सारा महल कभी सुंदर चित्रोंसे सुशोभित था । ये चित्र व बिल्कुल नष्ट हो गये हैं परन्तु श्राज भी इस रंगमहलकी नानोत्पल रचित चित्रकारी अपने चटकीले रंगोंसे चित्तको आकर्षित करती है । इतनी ही शताब्दियोंके पश्चात् भी इनके रंग ज्यों के त्यों बने हुए हैं। दक्षिणी एवं पूर्वी पार्श्व में नानोत्पलखचित हंस एवं कदलीकी पंक्तियां, वृक्ष, सिंह, हाथी, आदि अत्यंत मनोरम हैं । मानमंदिर के प्रांगनों एवं झरोखोंमें अत्यंत सुंदर खुदायीका काम है । श्रांगनों में खंभों, भीतों, तोड़ों, गोखोंमें सुन्दर पुष्पों, मयूरों, सिंह, मकर, आदिकी खुदायी की गयी है । इस महलकी नानोत्पलखचित चित्रकारी, इसमें मिलने वाली उत्कीर्णक की छैनीका कौशल इसे भारतकी महानतम कलाकृतियों में रखता । इसके दक्षिणी पार्श्वकी कारीगरीको देखकर कहा जा सकता है कि मानसिंह ‘हिन्दू शाहजहां' था, जिसके पास न तो शादजहांका साम्राज्य तथा वैभव था ३३ २५७
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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