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________________ वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ महाराज मानसिह-- कीर्तिसिंहके पश्चात् कल्याणमल राजा हुअा। उसके राज्यकालकी कोई उल्लेखनीय घटना ज्ञात नहीं परंतु इनके पुत्र मानसिंह तोमर अत्यन्त प्रतापशाली तथा कलाप्रिय नरेश थे । इनके राज्यकालमें दिल्लीके बहलोल लोदीने ग्वालियरपर अाक्रमण प्रारंभ कर दिये। कूटनीतिसे और कभी धन देकर मानसिंहने इस संकटसे पीछा छुड़ाया। बहलोल १४८९ में मरा और उसके पश्चात् सिकंदर लोदी गद्दीपर बैठा । इसकी ग्वालियरपर दृष्टि थी परन्तु उसने इस प्रबल राजाकी अोर प्रारंभमें मैत्रीका ही हाथ बढ़ाया और राजाको घोड़ा तथा पोशाक भेजी । मानसिंहने भी एक हजार घुड़सवारोंके साथ अपने भतीजेको भेंट लेकर सुलतानसे मिलने बयाना भेजा। इस प्रकार महाराज मानसिंह सन् १५०७ तक निष्कंटक राज्य कर सके । १५०१ में तोमरोंके राजदूत निहालसे क्रुद्ध होकर सिकंदर लोदीने ग्वालियरपर आक्रमण किया । मानसिंहने धन देकर एवं अपने पुत्र विक्रमादित्यको भेजकर सुलह कर ली। सन् १५०५ में सिकंदर लोदीने फिर ग्वालियरपर अाक्रमण किया । मानसिंहने धन देकर एवं अपने पुत्र विक्रमादित्यको भेजकर सुलह कर लो । सन् १५०५ में सिकंदर लोदीने फिर ग्वालियरपर आक्रमण कर दिया । अबकी बार ग्वालियरने सिकंदरके अच्छी तरह दांत खट्टे किये । उसकी रसद काट दी गयी और बड़ी दुरवस्थाके साथ वह भागा । सन १५१७ तक फिर राजा मानसिंहको चैन मिला। परन्तु इस बार सिकंदरने पूर्ण संकल्पके साथ ग्वालियर पर आक्रमण करनेकी तैयारी की । तैयारी कर ही रहा था कि सिकंदर मर गया । तोमर वंशका अस्त-- सिकंदरके बाद इब्राहीम लोदी गद्दीपर बैठा । राज्य संभालते ही उसके हृदयमें ग्वालियर गढ़. लेनेकी महत्त्वाकांक्षा जाग्रत हुई । उसे अपने पिता सिकंदर और प्रपिता बहलोलकी इस महत्वाकांक्षामें असफल होनेकी कथा ज्ञात ही थी अतः उसने अपनी संपूर्ण शक्तिसे तैयारी की । जब गढ़ घिरा हुआ था उसी समय मानसिंहकी मृत्यु हो गयी । मानसिंहके पश्चात् तोमर लोदियोंके अधीन हो गये। विक्रमादित्य तोमर अपने नाममें निहित स्वातंत्र्यकी भावनाको निभा न सके । मानसिंह जितने बड़े योद्धा थे उतने ही बड़े प्रजा हितैषी तथा कलाप्रेमी थे । श्राज ग्वालियरके तमरघारमें मानसिंहका नाम वीर विक्रमादित्यके समान ही प्रख्यात है और उनकी कथाएं आज भी सर्वसाधारणमें प्रचलित हैं। गूजरि मृगनयना-- ___ मानसिंह और गूजरी मृगनयनाकी प्रेम कथा जहां श्राज जन-मन-रंजन करती है वहां उसका मूर्त रूप गूजरीमहल आज भी उस प्रेम कथाको अमर कर रहा है । कहते हैं महाराज मानसिंह एक दिन २५६
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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