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मानवजीवन में जैनाचारकी उपयोगिता कितना महत्त्वपूर्ण स्थान है । एक प्राथमिक जैन गृहस्थ शराब, मांस, जुना, चोरी, वेश्या, परस्त्री, आदि पापोंका त्यागी होता है । ये ऐसे पाप हैं जिनसे समाज और देश रसातलको जा सकता है। सचमुच में वह एक स्वर्णयुग था जब जैनाचारका यथार्थ पालन करनेवाले सज्जन भारत में रहते थे । उस समय प्रजामें सुख, शान्ति और सन्तोष था । कलह, ईर्ष्या और दंभका नाम भी नहीं था । यदि श्राज भी विश्वके नागरिक जैनाचारको अपने जीवन में उतार सकें तो संसार सुख और शान्तिका यागार बन सकता है और इस संघर्ष युगका अन्त हो सकता है ।
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