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________________ वर्णी अभिनन्दन ग्रन्थ अर्थात् न तो अपने विश्वासको झूठा बतानेका किसीको अधिकार देवें और न स्वयं किसीके विश्वासको सत्य ठहरावें । वस्तु स्वभाव ही निर्णायक है विचारने की बात है कि जब समुद्रके पानीफी ही भाप बनकर उसका ही बादल बनता है तब यदि वस्तु स्वभावके सिवाय कोई अन्य शक्ति ही वृष्टि बरसानेका प्रबन्ध करनेवाली होती तो वह कदाचित् भी उस समुद्रपर पानी न बरसाती जिसके पानीकी भाप बनकर ही यह बादल बना था । परन्तु देखने में तो यही आता है कि बादलको जहां भी इतनी ठण्ड मिल जाती है कि भापका पानी बन जावे वहीं वह बरस पड़ता है। यही कारण है कि वह समुद्रपर भी बरसता है और धरतीपर भी वह बादल तो इस बातकी जरा भी परवाह नहीं करता कि मुझे कहां बरसना चाहिये और कहां नहीं । इसी कारण कभी तो यह वर्षा समयपर हो जाती है और कभी कुसमयपर होती है, बल्कि कभी कभी तो यहां तक भी होता है कि सारी फसल भर अच्छी वृष्टि होती है, और खेती भी उत्तम होती है किन्तु अन्त में एक अाध पानीकी ऐसी कमी हो जाती है कि सारी बरी करायी खेती मारी जाती है । यदि वस्तु स्वभाव के सिवाय कोई दूसरा प्रबन्ध करनेवाला होता तब तो ऐसी अन्धाधुन्धी कभी भी न होती इस स्थानपर यदि वह कहा जाये कि उसकी तो इच्छा ही यह थी कि इस वर्ष इस खेत में अनाज पैदा न हो या कमती पैदा हो । परन्तु यदि यही बात होती तत्र तो वह सारी फसल भर अच्छी तरह पानी बरसाकर उस खेतीको इतनी बड़ी ही क्यों होने देता ? बल्कि वह तो उस खेतके किसानको ही इतना साहस न करने देता जिससे वह उस खेत में बीज बोवे | यदि किसानपर उस प्रबन्धकर्ताका वश नहीं चल सकता था और बीज बोये जानेको वह नहीं रोक सकता था तो खेतमें पड़े हुए बीजको ही न उगने देता । यदि बीजपर भी उसका वश नहीं था तो कमसे कम वृष्ठिकी एक बूंद भी उस खेतमें न पड़ने देता जिससे वह बीज ही जल भुनकर नष्ट हो जाता । और यदि संसारके उस प्रबन्धकर्ताकी यही इच्छा होतो कि इस वर्ष अनाज पैदा ही न हो या कमती पैदा हो, तो वह केवल उन्हीं खेतोंको खुश्क न करता जो दृष्टिके ऊपर ही निर्भर हैं बल्कि उन खेतोंको भी जरूर खुश्क करता, जिनमें नहर से पानी आता है । परन्तु देखने में यही श्राता है कि जिस वर्ष वृष्टि नहीं होती या कमती वृष्टि होती है उस वर्ष उन खेतोंमें तो प्रायः कुछ भी पैदा नहीं होता जो दैवमातृक ही हैं। हां, नहरसे पानी आनेवाले खेतों में उन्हीं दिनों सब कुछ पैदा हो जाता है। इससे यह बात प्रत्यक्ष सिद्ध है कि संसारका कोई एक प्रबन्धकर्ता नहीं है; बल्कि वस्तुस्वभावके कारण ही जब बादल बरसनेका वातावरण हो जाता है तब पानी बरस जाता है और जब वैसी परिस्थितियां नहीं जुटती तब वह नहीं बरसता । वर्षाको इस बातकी कुछ भी परवाह नहीं है कि उसके कारण कोई खेती हरी होगी या सूखेगी और संसारके जीवोंकी हानि होगी या लाभ एवं सुख । इसीसे कभी कभी ऐसी गड़बड़ी भी हो जाती है कि जहां जरूरत नहीं होती वहां तो मूसलाधार पानी बरस जाता है और जहां जरूरत होती १००
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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