SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ मनुष्यसे ही पैदा होता अनादि कालसे चला आता है। पशु पक्षियोंके बाबत भी जो अपने मां-बापसे ही पैदा होते देखे जाते हैं, यह मानना पड़ता है कि वे भो सन्तान अनु सन्तान सदासे ही चले आते हैं और बिना मां-बापके पैदा नहीं किये जा सकते हैं। गेहूं, चना, श्रादि पौधोंके बाबत भी, जो अपने पौधेके बीज, जड़, शाखा, आदिसे ही पैदा होते हैं, यह मानना पड़ता है कि वे भी सन्तानक्रमसे सदासे ही चले आते हैं, और किसी समयमें एकाएक पैदा होने शुरु नहीं हो गये हैं। इस तरह इन पशु, पक्षी, वनस्पति और मनुष्योंका अपने मां-बाप या बीज, आदिके द्वारा अनादि कालसे पैदा होते हए चला अाना मानकर इन सबकी उत्पत्ति और निवास स्थानके लिए इस धरतीको भी अनादि कालसे ही स्थित होना मानना पड़ता है। उनके स्वभाव भी अनादि और अनन्त ही पाये जाते हैं । अर्थात् अग्निका जो स्वभाव जलाने, उष्णता पहुंचाने और प्रकाश करनेका अब है वह उसमें सदासे ही है और सदा ही रहे गा । इनके ये गुण और स्वभाव अटल होनेके कारण ही मनुष्य इनके स्वभावोंकी खोज करता है और फिर खोजे हुए उनके स्वभावोंके द्वारा उनसे नाना प्रकारके काम लेता है। यदि वस्तुओंके ये गुण और स्वभाव अटल न होते, बदलते रहा करते- तो मनुष्यको किसी वस्तुके छूने और उसके पास जाने तकका भी साहस न होता; क्यों कि तब तो यही खटका बना रहता कि न जाने श्राज इस वस्तुका क्या स्वभाव हो गया हो, और इसके छूनेसे न जाने क्या फल पैदा हो । परन्तु संसारमें तो यही दिखायी दे रहा है कि वस्तुका जो स्वभाव अाज हैं वही कल था और वही आगामी कलको रहे गा । इसी कारण वह वस्तुओंके स्वभावके विषयमें अपने और अपनेसे पहलेके लोगोंके अनुभवपर पूरा भरोसा करता है और सभी वस्तुओंके स्वभावको अटल मानता है। इससे साफ साफ यही परिणाम निकलता है कि किसी विशेष समयमें, कोई, किसी वस्तुमें, कोई खास गुण पैदा नहीं कर सकता है, बल्कि जबसे वह वस्तु है तभीसे उसमें उसके गुण भी हैं। और यतः संसारकी वस्तुएं अनादि हैं इस कारण उनके गुण भी अनादि ही हैं-उनको किसीने नहीं बनाया है। इसी प्रकार यह भी मालूम हो जाता है कि दो या अधिक वस्तुत्रोंको किसी विधिके साथ मिलानेसे जो नवीन वस्तु इस समय बन जाती है वह इस प्रकारके मिलापसे पहले भी बनती थी और वही भविष्यमें भी बनेगी, जैसा कि नीला और पीला रंग मिलनेसे जो हरा रंग इस समय बनता है वही सदा से बनता रहा है और सदा बनता रहे गा । ऐसे ही किसी वस्तुके प्रभावसे जो परिवर्तन किसी दूसरी वस्तुमें हो जाता है वह पहले भी होता था और वही आगे भी हो गा । सारांश यह कि, संसारकी वस्तुअोंके आपसमें अथवा अन्य वस्तुओं पर अपना प्रभाव डालने या अन्य वस्तुओंसे प्रभावित होने, आदिके सब प्रकारके गुण और स्वभाव ऐसे नहीं हैं जो बदलते रहते हों या बदल सकते हों, बल्कि जांच और खोजके द्वारा उनके ये सब स्वभाव अटल दिखायी देते हैं-अनादि-अनन्त ही सिद्ध होते हैं। इसप्रकार, यह बात सिद्ध हो जाती है कि वृक्षसे बीज और बीजसे वृक्षकी उत्पत्तिके समान या अण्डेसे मुरगी और मुरगीसे अंडेके
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy