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जगतकी रचना और उसका प्रबन्ध उसके गुण और स्वभाव भी विना बनाये अनादि होते हैं । अब केवल इतनी ही बात निश्चय करना बाकी रह जाती है कि कौन वस्तु तो विना बनी हुई अनादि है और कौन वस्तु बनी हुई अर्थात् सादि है। सृष्टि नियम
खोज करनेपर संसारमें तो ऐसी कोई भी वस्तु नहीं मिलती है जो विना किसी वस्तुके ही बन गयी हो, अर्थात् नास्तिसे ही अस्तिरूप हो गयी हो । और न कोई ऐसी ही वस्तु देखी जाती है जो किसी समय नास्तिरूप हो जाती हो । बल्कि यहां तो वस्तुसे ही वस्तु बनती देखी जाती है; अर्थात् प्रत्येक वस्तु किसी न किसी रूपमें सदा ही बनी रहती है । भावार्थ, न तो कोई नवीन वस्तु पैदा ही होती है और न कोई वस्तु नाश ही होती है, बल्कि जो वस्तुएं पहलेसे चली आती हैं उन्हींका रूप बदल बदल कर नवीन नवीन वस्तुएं दिखायी देती रहती हैं; जैसा कि सोना, रूपा, आदि धातुओंसे ही अनेक प्रकारके आभूषण बनाये जाते हैं । क्या कभी इनके विना भी आभूषण बना सकते हैं ? सोना रूपा श्रादिके विना ये श्राभूषण कदाचित् भी नहीं बन सकते हैं । गरज यह कि एक सोना या रूपा, आदि धातुएं यद्यपि भिन्न भिन्न प्रकारके रूप धारण करती रहती हैं परन्तु सभी रूपोंमें वे धातुएं अवश्य विद्यमान रहती हैं। : प्रकार बीज, मिट्टी, पानी, वायु, आदि परमाणुओंके संघटनसे ही वृक्ष बनता है और फिर उस वृक्षको जला देनेसे वे ही परमाणु कोयला, धुश्रां, राख, आदिका रूप धारण कर लेते हैं और फिर भविष्यमें भी अनेक रूप धारण करते रहते हैं । इस तरह जगतका एक भी परमाणु कमती बढ़ती नहीं होता। बल्कि जो कुछ भी होता है वह यही होता है कि उनका रूप और अवस्था बदल, बदल कर नवीन, नवीन वस्तुएं बनतों और बिगड़ती रहती हैं। ऐसी दशामें किसी समय कोई वस्तु विना किसी वस्तुके ही बन गयी, अर्थात् नास्तिसे अस्तिरूप हो गयी नहीं कहा जा सकता । तर्क प्रमाण तथा बुद्धिबलसे काम लेने, और दुनियाके चलते हुए कारखानोंके नियमोंको टटोलनेके बाद तो मनुष्य इसी बातके माननेपर बाध्य होता है कि नास्तिसे अस्ति हो जाना अर्थात् विना वस्तुके वस्तु बन जाना बिलकुल ही असम्भव है। इसलिए यह बात तो स्पष्ट ही सिद्ध है कि संसारकी वस्तुएं नास्तिसे अस्तिरूप नहीं हो गयी है किन्तु किसी न किसी रूपमें सदासे ही विद्यमान चली आती हैं और आगेको भी किसी न किसी रूपमें सदा विद्यमान रहेंगी। अर्थात् संसारकी सभी जीव, अजीव रूप वस्तुएं 'अनादि-अनन्त' हैं जिनके अनेक प्रकारके नवीन नवीन रूप होते रहनेके द्वारा ही यह विचित्र संसार चल रहा है।
वस्तुके गुण
इस प्रकार जीव और अजीवरूप संसारकी सभी वस्तुओंकी नित्यता सिद्ध हो जानेपर अब केवल यह बात निर्णय करनेके योग्य रह जाती है कि संसारके ये सब पदार्थ किस प्रकारसे नवीन रूप धारण करते हैं। इस प्रकारकी शोधमें लगते ही सबसे पहिली बात यह मालूम होती है कि मनुष्य;
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