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________________ वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ परन्तु इन सभी चेतन अचेतन पदार्थोंको उस परमेश्वरने ही नास्तिसे अस्ति रूप कर दिया है। पहले तो एक परमेश्वरके सिवाय अन्य कुछ भी नहीं था; फिर उसने किसी समयमें अवस्तुसे ही ये सब वस्तुएं बना दी हैं जब वह चाहेगा तब इन सब पदार्थों को नास्तिरूप कर देगा और तब सिवाय उस ईश्वरके अन्य कुछ भी न रह जायगा। (२) दूसरी मान्यता वाले यह कहते हैं कि अवस्तुसे कोई वस्तु बन नहीं सकती वस्तुसे ही वस्तु बना करती हैं। इस कारण जीव अजीव ये दोनों प्रकारकी वस्तुएं जो संसारमें दिखायी देती हैं न तो किसीके द्वारा बनायी गयी हैं और न बनायी ही जा सकती हैं। जिस प्रकार परमेश्वर सदासे है और सदा तक रहेगा उसी प्रकार जीव अजीव रूप वस्तुएं भी सदासे हैं और सदा रहेंगी। परन्तु इन जीव अजीव रूप वस्तुओंकी अनेक अवस्थात्रों-अनेक रूपोंका बनाना बिगाड़ना उस परमेश्वरके ही हाथमें है। (३) तीसरे प्रकारके लोगोंका यह कहना है कि जीव और अजीव ये दोनों ही प्रकारको वस्तुएं अनादिसे हैं और अनन्त तक रहेंगी। इनकी अवस्था और रूपको बदलनेवाली, संसारचक्रको चलानेवाली, कोई तीसरी वस्तु नहीं है । बल्कि इन्हीं वस्तुओंके अापसमें टक्कर खानेसे इन्हींके गुण और स्वभावके द्वारा संसारका यह सब परिवर्तन होता रहता है-रंग-विरंगे रूप बनते बिगड़ते रहते हैं । सामञ्जस्य इस प्रकार, यद्यपि, इन तीनों प्रकारके लोगों के सिद्धान्तोंमें धरती अाकाशका सा अन्तर है तो भी एक अनिवार्य विषयमें ये सभी सहमत हैं; अर्थात् ये तीनों ही किसी न किसी वस्तुको 'अनादि' अवश्य मानते हैं । प्रथम वर्ग कहता है कि परमेश्वरको किसीने नहीं बनाया, वह तो विना बनाये ही सदासे चला आता है और अपने अनादि स्वभावानुसार ही इस सारे संसारको चला रहा है --- अनेक प्रकारकी वस्तुओंको बना बिगाड़ रहा है । दूसरेका यह कहना है कि परमेश्वरके समान जीव और अजीवको भी किसीने नहीं बनाया, वे सदासे चले आते हैं और सदा तक रहेंगे । इसी तरह तीसरा भी कहता है कि जीव और अजीव को किसीने नहीं बनाया, किन्तु ये दोनों प्रकारको वस्तुएं विना बनाये ही सदासे चली आती हैं । इन तीनों विरोधी मतवालोंमें यह विवाद तो उठ ही नहीं सकता कि विना बनाये सदासे भी कोई वस्तु हो सकती है या नहीं, और जब यह बात भी सभी मानते हैं कि वस्तुमें कोई न कोई गुण या स्वभाव भी अवश्य ही होता है; अर्थात् विना किसी प्रकारके गुण या स्वभावके कोई वस्तु हो ही नहीं सकती है, तब ये तीनों ही प्रकारके लोग यह बात भी जरूर मानते हैं कि जो वस्तु अनादि है उसके गुण और स्वभाव भी अनादि ही होते हैं। अर्थात् अकेले एक परमेश्वरको अनादि माननेवाले तो उस परमेश्वर के गुण और स्वभावको अनादि बताते हैं, जीव, अजीव और परमेश्वरको अनादि माननेवाले इन तीनों ही के गुणोंको अनादि कहते हैं, और केवल जीव और अजीवको ही अनादि माननेवाले इन दोनों ही के गुणोंको अनादि बताते हैं । अतः इन दो बातोंमें तो संसारके सभी मतवाले सहमत हैं कि ( १ ) संसारमें कोई वस्तु विना बनाये अनादि भी हुआ करती है और (२) ९६
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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