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________________ जैनधर्म तथा जैनदर्शन वर्तमान हैं उनके सम्बन्धमें अच्छी तरह अनुसन्धान करके ऐतिहासिक तत्त्वोंको खोजनेकी कोई उल्लेख योग्य चेष्टा नहीं हुई है। हां: कछ वर्षों से अति साधारण चेष्टा हई है। मैसूर राज्यके श्रवणबेलगोला नामक स्थानके चन्द्रगिरि पर्वतपर जो थोड़ेसे शिलालेख प्राप्त हुए हैं, उनसे मालूम होता है कि मौर्यवंशके प्रतिष्ठाता महाराज चन्द्रगुप्त जैन मतावलम्बी थे। इस बातको श्री विन्संट स्मिथने अपने भारतके इतिहासके तृतीय संस्करण ( १९१४ ) में लिखा है परन्तु इस विषयमें कुछ लोगोंने शंका की है किन्तु अब अधिकांश मान्य विद्वान इस विषयमें एकमत हो गये हैं । जैन शास्त्रोंमें लिखा है कि महाराज चन्द्रगुप्त (छट्टे ?) पांचवे श्रुतकेवली भद्रबाहुके द्वारा जैन धर्ममें दीक्षित किये गये थे और महाराज अशोक भी पहले अपने पितामह से ग्रहीत जैनधर्मके अनुयायी थे; पर पीछे उन्होंने जैन धर्मका परित्याग करके बौद्धधर्म ग्रहण कर लिया था । भारतीय विचारोंपर जैन धर्म और जैन दर्शनने क्या प्रभाव डाला है, इसका इतिहास लिखनेके समग्र उपकरण अब भी संग्रह नहीं किये गये हैं । पर यह बात अच्छी तरह निश्चित हो चुकी है कि जैन विद्वानोंने न्यायशास्त्रमें बहुत अधिक उन्नति की थी। उनके और बौद्ध नैयायिकोंके संसर्ग और संघर्षके कारण प्राचीन न्यायका कितना ही अंश परिवर्तित और परिवर्तित किया गया और नवोन न्यायके रचनेकी आवश्यकता हुई थी। शाकटायन, अादि वैयाकरण, कुन्दकुन्द, उमास्वामि, सिद्धसेन, दिवाकर भट्टाकलङ्कदेव, आदि नैयायिक, टीकाकृत्कुलरवि मल्लिनाथ, कोषकार अमरसिंह, अभिधानकार, पूज्यपाद, हेमचन्द्र, तथा गणितज्ञ महावीराचार्य, आदि विद्वान जैनधर्मावलम्बी थे । भारतीय ज्ञान भण्डार इन सबका बहुत ऋणी है। __ "अच्छी तरह परिचय तथा आलोचना न होनेके कारण अब भी जैनधर्मके विषयमें लोगोंके तरह तरहके ऊटपटांग खयाल बने हैं । कोई कहता था यह बौद्ध धर्मका ही एक भेद है। कोई कहता था कि वैदिक ( हिन्दू ) धर्ममें जो अनेक सम्प्रदाय हैं, इन्हींमें से यह भी एक है जिसे महावीर स्वामीने प्रवर्तित किया था। कोई, कोई कहते थे कि जैन आर्य नहीं हैं, क्योंकि वे नग्नमूर्तिोंको पूजते हैं। जैनधर्म भारत के मूलनिवासियोंके किसी एक धर्म सम्प्रदायका केवल एक रूपान्तर है। इस तरह नाना अनभिज्ञताओं के कारण नाना प्रकारकी कल्पनात्रोंसे प्रसूत भ्रान्तियां फैल रही थी, उनकी निराधारता अब धीरे धीरे प्रकट होती जाती है। जैनधर्म बौद्ध धर्मसे अति प्राचीन यह अच्छी तरह प्रमाणित हो चुका है कि जैनधर्म बौद्धधर्मकी शाखा नहीं है महावीर स्वामी जैनधर्मके स्थापक नहीं हैं, उन्होंने केवल प्राचीन धर्मका प्रचार किया था। महावीर या वर्द्धमानस्वामी बुद्धदेवके समकालीन थे । बुद्धदेवने बुद्धत्व प्राप्त करके धर्मप्रचार कार्यका व्रत लेकर जिस समय धर्मचक्रका प्रवर्तन किया था, उस समय महावीर स्वामी एक सर्व विश्रुत तथा मान्य धर्मशिक्षक थे। बौद्धोंके त्रिपिटक ८७
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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