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जैनधर्म तथा जैनदर्शन श्री अम्बुजाक्ष सरकार, एम. ए., बी. एल.
पुण्यभूमि भारतवर्ष में वैदिक ( हिन्दू ) बौद्ध और जैन इन तीन प्रधान धर्मोंका अभ्युत्थान हुआ है । यद्यपि बौद्धधर्म भारतके अनेक सम्प्रदायों और अनेक प्रकारके आचारों व्यवहारोंमें अपना प्रभाव छोड़ गया है, परन्तु वह अपनी जन्मभूमिसे खदेड़ दिया गया है और सिंहल, ब्रह्मदेश, तिब्बत, चीन, श्रादि देशोंमें वर्तमान है । इस समय हमारे देशमें बौद्धधर्मके सम्बन्धमें यथेष्ट आलोचना होती है, परन्तु जैन धर्मके विषयमें अब तक कोई भी उल्लेख योग्य पालोचना नहीं हुई। जैनधर्मके सम्बन्धमें हमारा ज्ञान बहुत ही परिमित है । स्कूलोंमें पढ़ाये जाने वाले इतिहासोंके एक दो पृष्ठोंमें ती० महावीर द्वारा प्रचारित जैन धर्मके सम्बन्धमें जो अत्यन्त संक्षिप्त विवरण रहता है, उसको छोड़कर हम कुछ नहीं जानते । जैनधर्म सम्बन्धी विस्तृत अालोचना करनेकी लोगोंकी इच्छा भी होती है, पर अभी तक उसके पूर्ण होनेका कोई विशेष सुभीता नहीं है। कारण दो चार ग्रन्थोंको छोड़कर जैनधर्म सम्बन्धी अग णित ग्रन्थ अभी तक भी अप्रकाशित हैं; भिन्न भिन्न मंदिरोंके गुप्त भण्डारोंमें जैन ग्रन्थ छिपे हुए हैं, इसलिए पठन या आलोचना करनेके लिए वे दुर्लभ हैं। हमारी उपेक्षा तथा अज्ञता
बौद्ध धर्मके समान जैनधर्मकी आलोचना क्यों नहीं हुई ? इसके और भी कई कारण हैं । बौद्ध धर्म पृथिवीके एक तृतीयांश वासियोंका धर्म है, किन्तु भारतके चालीस करोड़ लोगोंमें जैनधर्मावलम्बी केवल लगभग बीस लाख हैं । इसी कारण बौद्धधर्मके समान जैन धर्मके गुरुत्वका किसीको अनुभव नहीं होता । इसके अतिरिक्त भारतमें बौद्ध-प्रभाव विशेषताके साथ परिस्फुटित है। इसलिए भारतके इतिहासकी अालोचनामें बौद्धधर्मका प्रसङ्ग स्वयं ही अाकर उपस्थित हो जाता है । अशोकस्तम्भ, चीनी यात्री हुयेनसांगका भारतभ्रमण, आदि जो प्राचीन इतिहासकी निर्विवाद बातें हैं उनका बहुत बड़ा भाग वौद्धधर्मके साथ मिल हुअा है भारतके कीर्तिशाली चक्रवर्ती राजारोंने बौद्धधर्मको राजधर्मके रूपमें ग्रहण किया था, इसलिए किसी समय हिमालयसे लेकर कन्याकुमारी तककी समस्त भारतभूमि पीले कपड़ेवालोंसे व्याप्त हो गयी थी । किन्तु भारतीय इतिहासमें जैनधर्मका प्रभाव कहां तक विस्तृत हुअा था यह अब तक भी पूर्ण रूपसे मालुम नहीं होता है । भारतके विविध स्थानोंमें जैन कीर्तिके जो अनेक ध्वंसावशेष अब भी