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________________ वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ जीवके भेद ___पृथिवी, जल, वायु, तेज और वनस्पति शरीर वाले जीव स्थावर कहलाते हैं। इनको स्पर्शका ही विशेष रूपसे भान होता है । शेष स्पर्शादि द्वि इन्द्रियोंसे लेकर पांच इन्द्रिय वाले मनुष्य, आदि त्रस कहलाते हैं । कारण, इनमें अपनी रक्षा करने की चेष्टा होती है। मुक्त जीव ___ संवर और निर्जर।के प्रभावसे श्रास्रवका बन्धन छूटकर अात्म-प्रदेशोंमें से कर्मों के संयोगको तोड़ कर नाश कर दिया जाता है। तब जीव अपने आप ऊर्ध्व गमन करता हश्रा मुक्त हो जाता है। फिर उसका जन्म मरण नहीं होता। अहिंसा परमो धर्मः इस दर्शनके अनुयायियोंमें अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह, अादि सार्वभौम छह व्रतोंकी उपासना प्रधान रूपसे होती है। सब धोंके मूल अहिंसा व्रतकी उपासना करनेके कारण इन्हें 'अहिंसा परमो धर्मः'का अनुयायी कहा जाता है । ___ यत्र तत्र आये श्राचयोंके ईर्षा द्वेष सूचक अक्षरोंको पृथक् करके दर्शनके मूल सिद्धान्तोंपर विचार किया जाय तो वे सिद्धान्त वेदसे परिवर्द्धित सनातन ही प्रतीत होते हैं । कारण, भगवान वेदव्यासके न्यास भाष्यसे मूल जैनदर्शन, बिलकुल मिलता जुलता है । रही अापसके खण्डन मण्डनकी बात, सो हर एक दार्शनिकको उसमें पूरी स्वतंत्रता रही है जब वेदान्त-ब्रह्मसूत्रने अपने बराबरके योग शास्त्रके सिद्धान्तोंके लिए भी कह दिया है कि 'एतेन योगः प्रत्युक्तः' इससे योग प्रत्युक्त कर दिया गया, तब हम वेदके विचारोंके अतिरिक्त दार्शनिक खण्डन मण्डनपर ध्यान नहीं देते। उसमें तत्त्व ही ढूंढते हैं। __ अहिंसाको मुख्यतया मानने वाला यह दर्शन महावीर स्वामीके निर्वाण के बाद भी अहिंसाके मुख्य सिद्धान्तोंका संग्राहक रहा इसी कारण अग्रोहाधिप महाराज अग्रसेनजीकी सन्तानोंने अपनेको इस धर्ममें दीक्षित किया था। प्रायः जब किसी दर्शनका अनुयायी समुदाय अधिक जन हो जावेगा तबही उसके जुदे जुदे मण्डल खड़े होने लग जायगे । एक दुर्भिक्षके बाद जैनोंमें भी श्वेताम्बर नाम से दूसरा सम्प्रदाय बन गया। . महाराज अग्रसेनकी जैनसन्तानोंने दिगम्बर पथका अनुसरण किया, जो अब भी जैनसमुदायमें सरावगी कह कर पुकारे जाते हैं । वे प्रायः वैदिक संस्कार तथा अहिंसा व्रत दोनों ही का पालन करते हैं । इनमें अग्रवालों की संख्या अधिक है। सरावगी लोग वैदिक विधिसे ही उपवीत धारण करते हैं। दिगम्बर सम्प्रदायमें पहिले मूर्ति पूजाको न माननेवाला लगभग हजार व्यक्तियोंका एक समुदाय निकला था पर उसकी अधिक वृद्धि न हो सकी । काल पाकर श्वेताम्बर सम्प्रदाय भी 'संवेगी' और 'बाईस १. सब सरावगी अग्रवाल जैनी ऐसा करते हैं ; ऐसा नहीं है।
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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