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जैन दर्शन
रूप, रस गंध, स्पर्श गुणवाले तेज, जल, पृथ्वी, वायुका पुद्गल शब्दसे व्यवहार होता है क्योंकि ये 'पूरण-गलन' स्वभाव वाले होते हैं ।
पुद्गल द्रव्य सूक्ष्म और स्थूल भेदसे दो प्रकारका होता है । उसके सूक्ष्मपनेकी अन्तिम हद परमाणु पर जाकर होती हैं । तथा परमाणुअोंके संघात भावको प्राप्त हुए पृथिवी, अादिक स्थूल कहलाते हैं ।
जीव और पुद्गलोंकी गतिमें सहायकको धर्म कहते हैं तथा गति-प्रतिबन्धक 'अधर्म' नामसे पुकारा जाता है।
अवकाश देनेवाले पदार्थको 'श्राकाश' कहकर बोलते हैं । द्रव्यके पर्यायोंका परिणमन करनेवाला काल कहलाता है।
___ यह छह प्रकारके द्रव्योंका भेद लक्षण सहित दिखलाया गया है । सम्पूर्ण वस्तुज्ञान इन ही का प्रसार है, ऐसा इस दर्शन का मत है ।
जैनदर्शनका प्रमाण भी वेदान्त सिद्धान्तसे मिलता जुलता है। इनके यहां अपना और पर पदार्थका अापही निश्चय करनेवाला, स्वपर-प्रकाशक ज्ञानही 'प्रमाण' कहलाता है तथा इसके लिए आत्मा शब्दका भी व्यवहार होता है; क्योंकि यही ज्ञान प्रात्मा है। यह प्रत्यक्ष तथा परोक्ष भेदसे दो प्रकारका होता है । सांव्यवहारिक तथा परमार्थिक भेदसे प्रत्यक्ष भी दो प्रकारका कहा गया है। इन्द्रिय व मनकी सहायतासे जो ज्ञान होता है वह सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष कहलाता है। चक्षु और मन तो विषयका दूर रहने पर भी अनुभव करलेते हैं परन्तु बाकी इन्द्रियां विषयका समीप्य प्राप्त होने पर ही विशेष संयोग द्वारा अनुभव कर सकती हैं। इसलिए जैनागम मन और चक्षुको अप्राप्यकारी तथा बाकी चारों ज्ञानेन्द्रियोंको प्राप्यकारी कहता है । इन्द्रियोंके भेदसे उनके अनुसार इसके भी भेद होते हैं ।
जैनी लोग व्यवहारके निर्वाह करनेवाले प्रत्यक्षको सांव्यवहारिक प्रत्पक्ष कहते हैं। इसका दूसरा नाम मतिज्ञान भी है । यह इसके भेदोंके साथ कह दिया गया है। अब मय भेदोंके पारमार्थिक प्रत्यक्ष कहा जाता है।
____ जो प्रत्यक्ष किसी भी इन्द्रियकी सहायता न लेकर वस्तुका अनुभव कर ले वह पारमार्थिक प्रत्यक्ष कहलाता है। यही वास्तविक प्रत्यक्ष कहने योग्य है । बाकी प्रत्यक्ष तो लोकयात्राके लिए स्वीकार किया है। यह विकल पारमार्थिक प्रत्यक्ष और सकल पारमार्थिक प्रत्यक्षके भेदसे दो प्रकारका होता है। जो प्रत्यक्ष पूर्वोक्त प्रकारसे रूपी पदार्थोंका ही अनुभव कर सकता हो वह अरूपी पदार्थोंके अनुभवसे हीन होनेके कारण विकल परमार्थिक प्रत्यक्ष कहलाता है ।
जो तीनों कालोंमें से किसी भी कालके रूपी अरूपी प्रत्येक वस्तुका अनुभव कर लेता है, वह सकल पारमार्थिक प्रत्यक्ष होता है । इसका दूसरा नाम केवलज्ञान भी है । इस ज्ञानवाले केवली कहे जाते हैं । यही ज्ञानकी चरम सीमा है । यह मुक्त पुरुषोंके सिवा दूसरोंको नहीं हो सकता ।
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