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________________ वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ पुकारा जा सकता है, चौथी नोकर्मवर्गणा वह है जिससे प्राणीको रूपका ज्ञान करनेमें सहायक चक्षुर्द्रव्येन्द्रियका निर्माण होता है इसको चक्षुर्द्रव्येन्द्रिय नोकर्मवर्गणा अथवा रूप नोकर्मवर्गणा नामसे पुकारा जा सकता है और पांचवीं नोकर्मवर्गणा वह है जिससे प्राणीको शब्दका ज्ञान करने में सहायक कर्ण द्रव्येन्द्रियका निर्माण होता है इसको कर्ण द्रव्येन्द्रिय नीकर्म वर्गणा अथवा शब्द नोकर्म वर्गणा नामसे पुकारा जा सकता है। इस तरह विचार करनेपर मालूम पड़ता है कि सांख्यदर्शनकी पांच तन्मात्राओं और जैन दर्शनकी पांच नोकर्मवर्गणाओंमें सिर्फ नामका सा ही भेद है अर्थका भेद नहीं है, क्यों कि जिस प्रकार जैन दर्शनमें प्राणीके शरीरकी अवयवभूत पांच स्थूल द्रव्येन्द्रियोंके उपादान कारण स्वरूप सूक्ष्म पुद्गल परमाणु पुञ्जोंको नोकर्मवर्गणा नामसे पुकारा गया है उसी प्रकार सांख्यदर्शनमें पूर्वोक्त प्रकारसे प्राणीके शरीरके अवयवभूत पांच स्थूल भूतोंके उपादान कारण स्वरूप सूक्ष्म परमाणु पुञ्जोंको ही तन्मात्रा नामसे पुकारा जाता है। तात्पर्य यह है कि उस उस स्थूल भूतके उपादान कारण स्वरूप सूक्ष्म परमाणु पुञ्जोको ही सांख्य दर्शनमें उस उस तन्मात्रा शब्दसे व्यवहृत किया जाता है और पांचों स्थूल भूत पूर्वोक्त प्रकारसे प्राणीके स्थल शरीरके अवयव ही सिद्ध होते हैं । इसलिए शरीरके अवयवभूत अाकाश तत्त्व अर्थात् प्राणीको शब्द ग्रहणमें सहायक स्थूल कर्मेन्द्रि यके उपादान कारणभूत सूक्ष्म परमाणु पुञ्जोंको ही शब्द तन्मात्रा, शरीरके अवयवभूत वायुतत्त्व अर्थात् प्राणीको स्पर्श ग्रहणमें सहायक स्थूल स्पर्शनेन्द्रियके उपादान कारणभूत सूक्ष्म परमाणु पुञ्जोंको ही स्पर्श तन्मात्रा, शरीरके अवयवभूत जलतत्त्व अर्थात् प्राणीको रस ग्रहण में सहायक स्थूल रसनेन्द्रियके उपादान कारणभूत सूक्ष्मपरमाणु पुञ्जोंको ही रस तन्मात्रा, शरीरके अवयवभूत अमितत्त्व अर्थात् प्राणीको रूप ग्रहणमें सहायक स्थूल चक्षुरिन्द्रियके उपादान कारणभूत सूक्ष्मपरमाणु पुञ्जों को ही रूप तन्मात्रा और. शरीरके अवयवभूत पृथ्वीतत्त्व अर्थात् प्राणीको गंध ग्रहणमें सहायक स्थूल घ्राणेन्द्रियके उपादान कारणभूत सूक्ष्मपरमाणु पुंजोंको ही गन्ध तन्मात्रा मान लेना चाहिये । तन्मात्रा शब्दके साथ जो शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध शब्द जुड़े हुए हैं वे उक्त अर्थका ही संकेत करनेवाले हैं । ___ इस प्रकार पुरुष, प्रकृति, बुद्धि, अहंकार, पांच तन्मात्रा, और पांच स्थूल भूत इन चौदह तत्वोंका जैनदर्शनकी मान्यताके साथ सामंजस्य बतलानेके बाद सांख्य दर्शनके ग्यारह तत्त्व ( पांच ज्ञानेन्द्रियां, पांच कर्मेन्द्रियां और मन ) और शेष रहजाते है। जिनके विषयमें जैनदर्शनके मंतव्यको जाननेकी आवश्यकता है। जैनदर्शनमें अात्माकी चित् शक्तिको बुद्धि तथा अहंकारके अलावा और भी दस हिस्सोंमें विभक्त कर दिया गया है और इन दस हिस्सोंका पांच लब्धीन्द्रियों और पांच उपयोगेन्द्रियों के रूपमें वर्गीकरण करके स्पर्श लब्धीन्द्रिय और स्पर्शनोपयोगेन्द्रिय, रसनालब्धीन्द्रिय और रसनोपयोगेन्द्रिय,प्राणलब्धीन्द्रिय और प्राणोपयोगेन्द्रिय, चक्षुर्लब्धीन्द्रिय और चक्षुरुपयोगेन्द्रिय, तथा कर्णलब्धीन्द्रिय और कर्णोपयोगेन्द्रिय इसप्रकार उनका नामकरण करदिया गया है। सांख्य दर्शनमें ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियोंमें जिन ३२
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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