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बढ़ाया है। सैद्धान्तिक मतभिन्नता भले ही बनी रहे, किन्तु व्यावहारिक धरातल पर हमें एकमत दिखना ही चाहिए, अन्यथा हमारा वजूद ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाएगा। ___ ज्ञान और अनुभव की अपेक्षा हमारी और उनकी आयु में पाँच वर्ष और दो दिन का अन्तर कोई ज्यादा बड़ा अन्तर नहीं है, परन्तु उन्होंने हमें हमेशा अपना बड़ा भाई मानकर यथेष्ट समादर दिया है। अपनी इस स्वभावगत शालीनता के बल पर ही वह 'विशेष' की श्रेणी में अवस्थित हैं। अनेकानेक पुरस्कारों से सम्मानित होकर उन्होंने विद्वज्जगत का ही गौरव बढ़ाया है। उनकी अप्रतिम सेवाओं के प्रति सम्मान व्यक्त करने की भावना से इस
अभिनन्दन ग्रन्थ का प्रकाशन भारतीय संस्कृति की मूल पहचान 'कृतज्ञता' का संवाहक ही सिद्ध होगा। हमारी मंगल कामनायें हमेशा विद्वानों के इस क्षेत्रपाल के साथ हैं।
__ नरेन्द्र प्रकाश जैन (फिरोजाबाद) संरक्षक-श्री भारतवर्षीय दि. जैन शास्त्रि परिषद
3 जुझारू मनीषी डॉ. शेखरचन्द्र
बुन्देलखण्ड प्रान्त की माटी में पला-बढ़ा आदमी अपनी अलग पहचान रखता है। यहाँ के लोगों की यह विशेषता जताने के लिये जन-मानस ने एक अच्छी कहावत गढ़ ली है- 'सौ दण्डी : एक बुन्देलखण्डी'। इस कहावत का अर्थ है- 'दण्ड बैठक लगाने वाले सौ पहलवानों का सामना करने के लिये एक सीधा-सादा बुन्देलखण्डी पर्याप्त है।'
बस, कुछ ऐसे ही जन्मजात जुझारू चरित नायक हैं हमारे भाई डॉ. शेखरचन्द्र। विपन्न परिस्थितियों में जन्म और अभावों के आनन्द में लालन-पालन, यही उनके बालपने की कथा रही। नून-तेल-लकड़ी की चिन्ता से जूझती जवानी में जो समय बचा पाये उसका एक-एक क्षण ‘अपने बल पर । अपना उत्कर्ष' करने में नियोजित करके वे नित-प्रति पग-पग आगे बढ़ते गये। एक कवि मित्र ने कहीं लिखा थाकुछ लिख के सो, कुछ पढ़े के सो। जिस जगह जागा सबेरे, उस जगह से बढ़ के सो।
सो मुझे लगता है यह पंक्ति बालक शेखर ने कहीं पढ़ ली थी और तब से अब तक व्यवहार में आठों याम उसका अनुवाद कर रहे हैं। इसके लिये उन्हें किस किस से कितना जूझना पड़ा है इसका कोई हिसाब नहीं है। कदम कदम पर विकटता न मिले तब तक कोई स्वावलंबी बन भी कैसे सकता है। शेखरचन्द्र सही अर्थो में 'सेल्फ मेड परसन' हैं, और इसका उन्हें गौरव है। इसीलिये तो उन सा मित्र या भाई पाकर हम भी गौरवान्वित हैं। __आज उनके लिये अभिनन्दन ग्रन्थ की योजना हो रही है यह हमारे लिये प्रसन्नता की बात है। इस बात का पछतावा जरूर है कि इसमें कुछ देर हो गई। उनके कई शिष्यवत् महानुभावों तक के अभिनन्दन कब के निपट चुके और शेखरचन्द्र बैठे रहे। यह आश्चर्य की बात नहीं, उनकी चलती तो वे जीवन भर बैठे ही रहते। यह तो उनके मित्रों की करामात है कि बलात् यह आयोजन कर डाला और इस उपसर्ग को सहने के लिये उन्हें जैसेतैसे तैयार कर लिया है। उन सभी आयोजक मित्रों को बारम्बार बधाई। __ हम इस आयोजन की सब प्रकार सफलता की कामना करते हुए भाई शेखरचन्द्र के लिये निरोग दीर्घायु और यशवृद्धि की कामना करते हैं।
श्री नीरज जैन (सतना) 1