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गतियों के वातावनी | कज्जं णिय-हत्थे णएदि तं पुण्णं कुब्वेदि। सिक्खाए सह-सहेव धम्म पडि समप्पिदो णिट्ठावंतो णिरंतरमेव णिय
उद्देसे वि संलग्गो। जो कल्लाण-कारिणी-सव्व-हिय-णिरोगिणी-संजीविणी-तेगिच्छं णिरोग-आरोग्ग-बड़ढणं । इच्छमाणो तुमं सेहरो सेहरो होदि। सो धम्म-उवासगो कम्म-उवासगो णिम्मल-भावणा-जुतो सेहरो अहिणंदणजोग्गो अहिवंदणं च।
जीकेज सद-वासेजं, सिक्खग-सिक्ख-णायगो। विण्ण जणाण विष्णेयो, दुक्ख-जणाण सेहरो॥
डॉ. उदयचंद्र जैन अध्यक्ष, पालि-प्राकृत विभाग, सुखाड़िया युनि., उदयपुर
. विद्वानों के क्षेत्रपाल : डॉ. शेखरचन्द्र जैन विद्वान्, ज्ञानी, डाक्टर (शब्द-पारखी) और पण्डित शब्द प्रायः पर्यायवाची माने जाते हैं। मनीषियों ने इन शब्दों की अनेक प्रकार से व्याख्यायें की हैं। एक नीतिकार ने कहा है- “योऽन्तस्तीव्रपरव्यथाविघटनं जानात्यसौ पण्डितः' अर्थात्- जो अपने हृदय में दूसरों की पीड़ा को दूर करना जानता है, वह पण्डित है। डॉ. शेखरचन्द्र जैन पर यह परिभाषा सही-सही घटित होती है। किसी भी सभा- सम्मेलन में यदि आयोजकों के द्वारा किसी विद्वान् की उपेक्षा या अनादर होता हुआ दिखाई देता है तो डाक्टर साहब को हमने अनेक बार भूल-सुधार न होने तक उनसे उलझते देखा है। उनके इसी गुण के कारण हमने एक बार उन्हें 'विद्वानों का क्षेत्रपाल' कह दिया था। बाद में यह सम्बोधन सर्वप्रिय हुआ। आज सभी यह मानते हैं कि विद्वानों के स्वत्व, स्वाभिमान और सम्मान की सुरक्षा के लिए आवाज उठाने वालों में डॉ. शेखरचन्द्र जैन एक अग्रणी विद्वान हैं।
डॉक्टर साहब एक अतिथिसत्कार - परायण व्यक्ति हैं। जब कभी किसी निमित्त से हमारा अहमदाबाद जाना हुआ, उनका आतिथ्य ग्रहण किए बिना वहाँ से लौटना सम्भव ही नहीं हो सका। ऐसा ही अनुभव सभी विद्वानों का है। जो भी एक बार उनके सम्पर्क में आता है, उनकी इस आत्यीयता के कारण हमेशा के लिए उनसे जुड़ जाता है। उनकी महेमाननवाजी से आंग्लभाषा की यह उक्ति पूर्णतः सही सिद्ध होती है- “To Welcome guest is a high Conduct'' अर्थात् – अतिथि-सत्कार करना एक श्रेष्ठ आचरण है। अक्षरजीवी पुरुष प्रायः एकान्तप्रिय एवं शुष्क स्वभावी होते हैं, परन्तु डाक्टर साहब के व्यक्तित्व में मिलनसारिता और मृदुभाषिता का संगम दृष्टिगत होता है। __डॉ. शेखर जैन कोरे पण्डित नहीं है, एक प्रेक्टीकल व्यक्ति हैं। साहित्य, शिक्षा, पत्रकारिता, संस्कृतिसंरक्षण, धर्म-प्रचार, चिकित्सा और समाज-सेवा के क्षेत्र में उन्होंने अपनी सृजनात्मक क्षमता का अच्छा परिचय दिया है। जैसा वह बोलते या लिखते हैं, वैसा ही करके भी दिखाते हैं। आदिपुराण में कहा गया है- “क्रियावान् पुरुषो लोके, सम्मतिं याति कोविदः' - सकारात्मक सोच वाले सक्रिय पुरुष ही सुविज्ञ पुरुषों के द्वारा सम्मानित होते हैं। डॉ. साहब को समाज में जो अत्यधिक समादर प्राप्त है, उसका श्रेय उनकी कर्मटता को ही है।
दिगम्बर और श्वेताम्बर समाज के मध्य वह पुल का काम कर रहे हैं। आज की प्रथम आवश्यकता यही है कि संख्या-बल की दृष्टि से मुट्ठी भर हम सभी जैन लोग एकजुट दिखाई दें। जैन एकता की इस आवाज को वह हमेशा बुलन्द करते रहे हैं। देश-विदेश में अपने प्रवचनों के माध्यम से उन्होंने अपने इसी चिन्तन को आगे ,