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■ नहीं जन्मा पुरुष यह हारने को
डॉ. शेखरचन्द्र जैन बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हैं । 'चलना हमारा काम है' उनका जीवनसूत्र है। वरना ७० वर्ष की आयु में लोग 'बांध गठरिया' का सूत्र का स्मरण करते हुए जीवन एवं जनजीवन से विमुख हो जाते हैं। 'दिनकर' साहित्य पर पीएच. डी. की उपाधि प्राप्त करनेवाला यह विद्वान 'रश्मिरथी' में कर्ण के बारे में श्रीकृष्ण द्वारा की गई उक्तिको सार्थक करता है : 'नहीं जन्मा पुरुष यह हारने को ' ।
डॉ. जैन हिन्दी के जानमाने विद्वान एवं जैनधर्म के प्रकाण्ड पंडित हैं । वलिया आर्ट्स - कोमर्स कालेज के प्राचार्य के रूप में सुदीर्घ अवधि तक सेवारत रहने के पश्चात् श्रीमती सद्गुणाबहन आर्ट्स कालेज, अहमदाबाद में हिन्दी 1 के विभागाध्यक्ष के रूप में अवकाश-प्राप्ति तक काम करते रहे।
जब वे भावनगर में स्थित वलिया कालेज में प्राचार्य थे, प्राकृत भाषा एवं जैन - साहित्य के प्रति वे प्रबल रूचि रखते थे । इस विषय में विद्यावाचस्पति की उपाधि प्राप्त करने की भी उनकी इच्छा थी, लेकिन विश्वविद्यालय के कठोर नियमों के कारण उनका यह सपना साकार नहीं हो सका।
एक तरफ उनकी कलम काव्यरचना एवं गद्यलेखन के प्रति सक्रिय थी, तो दूसरी ओर उनका मन पंछी धर्म के ज्ञात-अज्ञात रहस्यों को पूरी तरह समझने के लिए बेचैन था।
धर्म के प्रति लगाव एवं समर्पण भाव के कारण 'मुक्ति का आनंद', जैन धर्म सिद्धान्त और आराधना 'तन साधो, मन बाँधो', मृत्यु महोत्सव, मृतुंजयी केवली राम (उपन्यास) ज्योतिर्धरा (कहानी संग्रह), आचार्य कवि विद्यासागरका काव्य वैभव, आर्यिका ज्ञानमती (जीवनी) जैन शब्दावली एवं श्री कापडिया अभिनंदन ग्रंथ, आर्यिका ज्ञानमती अभिवंदन ग्रंथ, गुजरात की निर्देशिका, गुजराती कल्पसूत्र एवं जिनवाणी का संपादन आदि किताबों एवं शोधलेख उनकी विद्याव्यासंगिता के सबूत हैं।
डॉ. जैनने गुजरात विद्यापीठ की जैन शोधपीठ का दायित्व भी संभाला। उनकी विद्वता एवं प्रशासकीय कुशलता को ध्यान में रखते हुए जैन विश्वभारती, लाडनू ( राजस्थान) के कुलपति चयन की पेनल में भी उनका नाम प्रस्तावित हुआ था । उनको जैनधर्मलक्षी प्रवचन के लिए अमरिका, यू. के. आदि से लगातार आमंत्रण मिलते ! रहे हैं और अनेक उल्लेखनीय पुरस्कारों से उनका साहित्य सम्मानित होता रहा है। साहित्यिक, शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के पदाधिकारी के रूप में डॉ. जैन की सेवाएँ काबिल-ए-तारीफ रही हैं।
डॉ. जैन को मैं तीन दशकों से जानता हूँ। उनका व्यक्तित्व अनेक विकट परिस्थितियों के बीच विकिसत हुआ है। वे संकल्पव्रती हैं। झुकना उनका स्वभाव नहीं । सच्चाई के लिए वे जुझारू भी बन सकते हैं, लेकिन दिल में कटुता कभी नहीं । उनके हृदय में मैत्री भावना का निर्मल निर्जर अहर्निश बहता रहता है । इस अर्थ में वे शतप्रतिशत जैन हैं। सेवा भावना ने ही उनको आम आदमी की चिन्ता करना सिखाया है। 'समन्वय ध्यान साधना केन्द्र' के ट्रस्टी एवं द्वारा संचालित 'श्री आशापुरा माँ जैन चेरिटेबल अस्पताल' की सफलतापूर्वक अध्यक्षता करते हुए उन्होंने मानवता का महान आदर्श चरितार्थ किया है।
डॉ. जैन एक सन्निष्ठ पत्रकार एवं सम्पादक हैं। वर्ष- २००० के जैन पत्रकारिता के श्रेष्ठ राष्ट्रीय पुरस्कार 'श्रुतसंवर्धन' से एवं गुजरात के महामहिम राज्यपाल श्री ने भी 'जैन विद्वान' के रूप में उन्हें सम्मानित किया है।
डॉ. शेखर जैन मनस्वी भी हैं और तपस्वी भी । उनका जैनत्व कायरता का समर्थक नहीं, वीरत्व का परिपोषक 'है। वे 'शेखरचन्द्र' भी है और 'चन्द्रशेखर' भी । वाणी में ब्राह्मणत्व, साहित्यिकता में क्षात्रत्व, एवं निस्वार्थ सेवा
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