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________________ जादीलिए जो फामाका भार 2891 ! का प्रबन्ध नहीं हो पा रहा था। ऐसे संकट के समय ग्वालियर राजकोष के कोषाध्यक्ष भामाशाह अमरचन्द बांठिया ने उच्चकोटि की देशभक्ति का परिचय दिया और राजकोष से क्रांतिकारियों की सहायता की। बांठिया जी द्वारा दी गयी सहायता से क्रांतिकारियों का संकट दूर हुआ और उनके होंसले बुलन्द हुए। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई 1 लड़ते लड़ते शहीद हो गयीं। ग्वालियर में नरेश जयाजी राव पुनः सत्ता में आ गये। बांठिया को देशद्रोह के अपराध में गिरफ्तार किया गया। रानी झांसी के बलिदान के चार दिन बाद 22 जून 1858 को ग्वालियर की जमीन पर न्याय का ढोंग रचकर सर्राफा बाजार में स्थित नीम के पेड़ पर बांठिया जी को फांसी पर लटका दिया गया। सभ्यता का दम भरने वाली ब्रिटिश हुकूमत की क्रूरता की पराकाष्ठा ही तो थी कि देशभक्त बांठिया जी को फांसी पर लटका कर उनकी लाश को यूं ही तीन दिन टागें रखा गया। ग्वालियर के सर्राफा बाजार में खडा नीम का पेड़ अतीत की उस गौरवमय कुर्बानी की याद दिलाता है। पेड़ के नीचे बांठियाजी का स्टेच्यू लगाया गया है। __ अमर जैन शहीद मोतीचन्द जैन . __ प्रसिद्ध क्रांतिकारी अर्जुन लाल सेठी एक बार दक्षिण महाराष्ट्र जैन सभा के अधिवेशन में मुख्य वक्ता के रूप में सांगली गये वहीं उनकी भेंट दो तरूणों से हुई उनमें से एक थे अमर शहीद मोतीचन्द शाह। मोतीचन्द शाह का एक ही लक्ष्य था किस तरह देश को आजाद करवाया जाये। सेठीजी उन्हें जयपुर ले आये। मोतीचन्द का परिचय । राजस्थान के प्रसिद्ध क्रांतिकारी जोरावरसिंह बारहठ से हुआ, जिनके गाँव देवपुरा में उन्होंने शस्त्र-अस्त्र चलाने । की शिक्षा ली तथा क्रांतिकारी दल में शामिल हो गये। क्रांतिकारी दल का काम अर्थाभाव के कारण ठप होता जा रहा था। अतः मोतीचन्द, जोरावरसिंह, माणिकचन्द, शिवनारायण दिवेदी आदि युवकों ने किसी देशद्रोही धनिक को मारकर धन लाने का निश्चय किया। परिणामतः निमेज, जिला शाहाबाद (बिहार) के महंत को मारकर भी तिजोरी की चावी न मिल पाने के कारण इच्छित धन प्राप्त नहीं कर सके यह घटना मार्च 1913 की है। इस घटना के बाद अर्जुन लाल सेठी अपने शिष्यों के साथ इन्दौर चले गये। एक दिन अचानक पुलिस द्वारा शिवनारायण द्विवेदी की तलाशी ली गयी तो उनके पास कुछ क्रांतिकारी परचे निकले। तभी पुलिस को महंत की हत्या के सुराग मिले। पुलिस ने सबको गिरफ्तार किया। कई मास मुकदमा चला। पं. विष्णुदत्त शर्मा को दस वर्ष का काला पानी तथा मोतीचन्द्र को फाँसी की सजा हुई. अर्जुन लाल सेठी को जयपुर के जेल में बन्द कर दिया गया। मोतीचन्द की प्राण रक्षा के लिए जो अपील की गयीं वे सब व्यर्थ गयीं और अनत में उन्हें 1915 ई. में फाँसी पर लटका दिया गया। जेल में खून से लिखा गया मराठी भाषा में उनका पत्र आज भी युवकों को उतना ही स्फूर्ति दायक है। अमर जैन शहीद सिंघई प्रेमचन्द स्वतन्त्रता आन्दोलन में गांधीजी के आह्वान पर पढ़ाई-लिखाई छोड़कर आजादी की लड़ाई में सम्मलित होकर गांधीजी के सन्देशों को गांव-गांव प्रचार करने वाले नवयुवक थे अमर शहीद सिंघई प्रेमचन्द जैन। दिसम्बर 1933 में गांधीजी दमोह नगर में आये। गांधीजी से प्रभावित प्रेमचन्द गांधीमय हो गये। वे गांव-गांव में डुग्गी बजाकर गांधीजी के संदेशों का प्रचार करने लगे। द्वितीय विश्वयुद्ध प्रारम्भ हो चुका था। सागर के तत्कालीन डिप्टी. कमिश्नर दमोह पधारे, उन्होंने सेना में भर्ती हेतु जन समुदाय को संबोधित किया उनका भाषण चल ही रहा था कि सिंघई प्रेमचन्द ने सिंह गर्जना करते
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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