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हुए कहा कि- 'यह युद्ध हमारे देश के हित में नहीं है, हमें कोई मदद नहीं करनी है, हम सब इसका बहिष्कार करते हैं।' इस ललकार से डिप्टी कमिश्नर क्रोध से आग बबूला हो उठे, पुलिस ने प्रेमचन्द को पकड़ लिया, भ में उत्तेजना फैल गयी, तब डिप्टी कमिश्नर ने कहा कि- 'हम तो इन्हें भाषण देने के लिए बुला रहे हैं।' अब ये भाषण देंगे 'प्रेमचन्द ने बडा ओजस्वी भाषण दिया / जनसमूह ने 'प्रेमचन्द जिन्दाबाद' के नारे लगाये । डिप्टी. कमिश्नर पुलिस संरक्षण में किसी तरह जान बचाकर भागे ।'
गांधीजी द्वारा चलाये गये व्यक्तिगत आन्दोलन में प्रेमचन्द ने १४ जनवरी १९४१ को हटा तहसील में मकर संक्राति के उपलक्ष्य में लगे मेला में उपस्थित जनसमुदाय के बीच ओजस्वी भाषण दिया। आपको गिरफ्तार कर दमोह लाया गया और कारावास की सजा सुनायी गयी । प्रेमचन्द को पहिले सागर फिर नागपुर जेल में भेज दिया गया। इसे विधि की विडम्बना कहें या प्रेमचन्द को मातृभूमि पर शहीद होने का सौभग्य । जिस डिप्टी कमिश्नर ! को दमोह में प्रेमचन्द के कारण सभा से भागना पड़ा था वह स्थानान्तरित होकर नागपुर जेल पहुँचे। वहाँ प्रेमचन्द
को देखकर पूर्व स्मृतियाँ उबुद्ध हो गयीं, उसने प्रेमचन्द को समय से पहिले रिहा किया और विशेष आग्रहपूर्वक भोजन कराया। प्रेमचन्द को क्या मालूम कि जिस भोजन को वे कर रहे थे उसमें उनकी मृत्यु उन्हें दी गयी है। नागपुर से दमोह टिकिट आदि की व्यवस्था कर उन्हें ट्रेन में बैठा दिया गया उधर दमोह में उनके आगमन की खबर सुनकर जनता उनके स्वागत के लिए तैयारी में जुट गयी पर यह क्या? ट्रेन में ही प्रेमचन्द की हालत बिगडने लगी किसी तरह उन्हें घर लाया गया जहाँ सभी चिकित्सकों ने एक मत से कहा कि उन्हें दिया विष शरीर में इतना फैल चुका है कि हटा पाना मुश्किल है और प्रेमचन्द शहीद हो गये उनकी शहादत चिरस्मरणीय रहेगी। दमोह में उनकी प्रतिमा लगाई जाना प्रस्तावित है।
अमर जैन शहीद श्री मगनलाल ओसवाल
इन्दौर (म.प्र.) के अमर जैन शहीद भगमलाल ओसवाल की मोरसली गली में छोटी सी किराने की दुकान थी। 1941 के आन्दोलन के समय ओसवालजी की उम्र 24-25 वर्ष की रही होगी। 6 दिसम्बर 1942 1 को एक जुलूस निकाला गया, जिसका नेतृत्व पुरूषोत्तमलाल विजय कर रहे थे। मगनलाल भी आगे-आगे नारे लगाते हुए चल रहे थे, जब जुलूस सर्राफा बाजार पहुँचा तो भारी संख्या में पुलिस आ गयी और 'जुलूस को घेर लिया। पुलिस ने अचानक ही इन अहिंसक सत्याग्रहियों पर लाठियों और गोलियों की बौछार शुरू कर दी । । मगनलाल को भी गोली लगी और वे वहीं गिर पडे । मगनलाल को पुलिस अस्पताल ले गयी बहुत लम्बे समय तक ये अस्पताल में रहे। घाव ठीक न होने से अंततः आजादी की लडाई का यह सिपाही देश की आजादी का सपना संजोये 23 दिसम्बर 1945 को वीरगति को प्राप्त हो गया।
अमर जैन शहीद बीर उदयचंद जैन
मण्डला (म.प्र.) के अमर जैन शहीद वीर उदयचंद जैन 1942 के आन्दोलन के समय मैट्रिक के छात्र थे । ! 15 अगस्त 1942 को मण्डला में एक जुलूस निकला । गोली चली। वीर उदयचंद ने कमीज के बटन खोलकर कहा चलाओ गोली। गोली चली और उदयचंद गिर पड़े। अस्पताल में 16 अगस्त को प्रातः उदयचन्द वीरगति
प्राप्त हो गये, वे देश के लिए शहीद हो गये । उदयचन्द की कीर्ति को चिरस्थायी बनाने के लिए महाराजपुर में जहाँ उनकी समाधि है प्रतिवर्ष मेला लगता है। मंडला में उदय चौक और उदय स्तंभ बना हुआ है नगर पालिका द्वारा उदय प्राथमिक विद्यालय बनाया गया है। हम सब इस वीर सपूत की शहादत को हमेशा स्मरण कर