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2881 | का एक लक्ष्य था हमें देश को आज़ाद कराना है। ____ स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद स्वतंत्रता आंदोलन, शहीदों तथा सेनानियों पर बहुत कुछ लिखा गया पर जैन समाज इस संबंध में उदासीन रहा, कोई सकारात्मक भूमिका सामने नहीं आयी। तब इस संबंध में एक बृहत योजना बना जैनों का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान विषय पर 'स्वतंत्रता संग्राम में जैन' ग्रन्थ प्रकाश में आया। जिसमें 20 शहीदों व म.प्र., उ.प्र., राज. के ७५० जेल जैनयात्रियों का सचित्र परिचय लगभग ५३० पृष्ठों में दिया गया है। यहाँ प्रमुख जैन शहीदों का अत्यन्त संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत है। ___ अमर जैन शहीद लाला हुकुमचन्द कानूनगो जैन ___ भारतीय इतिहास में १८५७ की क्रांति का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस क्रान्ति यज्ञ में अपने जीवन की आहुति
देने वाले शहीद लाला हुकुमचन्द का नाम चिरस्मरणीय रहेगा। लाला हुकुमचन्द ने अपनी शिक्षा और प्रतिभा के बल पर मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फर के दरबार में उच्च पद प्राप्त कर लिया। १८४१ ई. में मुगल बादशाह ने आपको हांसी और करनाल जिले के इलाकों का कानूनगो एवं प्रबन्धकर्ता नियुक्त किया था। इस बीच अंग्रेजों ने हरियाणा प्रान्त को अपने आधीन कर लिया। १८५७ में जब स्वतन्त्रता संग्राम का बिगुल बजा तो लालाजी में भी कुछ कर गुजरने की तमन्ना जागी। दिल्ली जाकर बादशाह ज़फर से भेंट की ओर देश भक्त नेताओं के उस सम्मेलन में शामिल हुए जिसमें रानी लक्ष्मीबाई, तात्याटोपे आदि थे। लालाजी स्वतन्त्रता की प्राप्ति के लिए जीवन
की अन्तिम घड़ी तक संघर्ष करने का संकल्प ग्रहण कर हांसी वापिस लौटे। हांसी में देशभक्त वीरों को इकट्ठा । किया।
जब अंग्रेजों की सेना हांसी होकर दिल्ली पर धावा बोलने जा रही थी तब उस पर आपने हमला किया और उसे भारी हानि पहुँचायी। लालाजी एवं उनके साथी मिर्जा मुनीर बेग ने एक पत्र बादशाह को लिखा जिसमें सहायता की मांग की किन्तु, पत्र का कोई उत्तर नहीं आया इसी बीच बादशाह ज़फर अंग्रेजों द्वारा बन्दी बना लिये गये। अंग्रेजों ने जब बादशाह की निजी फाइलों को टटोला तो, लालाजी द्वारा भेजा पत्र अंग्रेजों के हाथ लग गया और उन्होंने लिखने वाले के विरुद्ध कठोर कार्यवाही का आदेश दिया। लालाजी और मिर्जा मुनीर बेग के घर छापे मारे गये और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 18 जनवरी 1858 को दोनों की फांसी की सजा सुनायी गयी। लाला हुकुमचन्द के मकान के आगे दोनों को फांसी दे दी गयी। अंग्रेजी राज का आतंक फैलाते हुए इन शहीदों के शव को उनके रिश्तेदारों को न देकर धर्म विरूद्ध लाला जी को दफनाया गया और मिर्जा मुनीर को जला दिया गया। इतना ही नहीं लालाजी के तेरह वर्षीय भतीजे फकीरचन्द जैन को भी पकड़कर वहीं फांसी पर चढ़ा दिया गया। स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास का यह क्रूरतम अध्याय था। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद लाला । हुकुमचन्द की याद में हांसी में उनके नाम पर पार्क एवं उनकी प्रतिमा लगाई गयी है।
अमर जैन शहीद अमर चंद बांठिया 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम की अमर गाथा जाने अनजाने शहीदों ने अपने रक्त से लिखी है। इसी संग्राम के एक शहीद थे अमरचन्द बांठिया। अमरचन्द बांठिया ने अपने प्राणों की परवाह न करते हुये 1857 के महासमर में जूझ रहे क्रांतिवीरों की संकट के समय आर्थिक सहायता तथा खाद्य सामग्री आदि देकर मदद की थी। बांठिया जी को उनके गुणों से प्रभावित होकर ग्वालियर नरेश सयाजीराव सिंधिया ने इन्हें गंगाजली राजकोष का कोषाध्यक्ष बना दिया था। इस कोषालय में असीम धन सम्पदा थी, जिसका अनुमान सिंधिया नरेश को भी नहीं था।
रानी झांसी और उनकी सेना जब ग्वालियर में युद्ध कर रही थी, तो कई महीनों से वेतन और समुचित राशन