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________________ આદર્શ જીવનકા અપૂર્વ પ્રભાવ ૫ व्रतपालनकी यह कठिनता सुनकर उक्त बन्धु ने नम्र भावसे कहा कि मैं इस विषय में खूब गहराई से सोच समझ कर दृढ निश्चय कर के आप के पास व्रत ग्रहण करनेकी उत्कंठा से आया हूं | आप पूज्यवर विश्वास रक्खें कि मैं यथाशक्ति मन-वचन-काया से व्रतपालन में तत्पर रहूंगा। इस से महाराज साहिब ने फरमाया कि मैं तुम को कुछ वर्षों के लिये ही प्रतिज्ञा कराता हूं तथापि मेरे मित्र ने मनसे ही जीवनभर के लिये प्रतिज्ञा धारण कर ली। वे भाई व्रत लेकर घर आये और दिन-प्रतिदिन बडे समभाव से एवं सावधानी पूर्वक व्रत पालन करने लगे । और उसका उत्तरोत्तर निरतिचार रूपसे व्रत कैसे पाला जावे तथा उस का साधक, बाधक तथा शोषक, पोषक कारणो पर खूब मंथन, परिशीलन करते रहे और परिशुद्धि के साथ अपनी प्रतिज्ञा निभाने में सावधानी पूर्वक शक्य प्रयत्न करते रहे । परिणाम यह आया कि जीवन में चहुमुखी उन्नति होती गई अर्थात् दिन दुगुनी और रात चौगुनी उत्तरोत्तर वृद्धि को प्राप्त होते गये । सर्व प्रथम तो उनको अपने आरोग्यवृद्धि में अनूठा लाभ अनुभव हुआ और छोटी बडी जो कोई भी आधि-व्याधि उपाधियां थी वह स्वाभाविक ही पलायन हो गई । इसके अतिरिक्त व्यावहारिक एवं व्यावसायिक जीवन में भी विशेष अन्तर दृष्टिगोचर हुआ। हजारों से लाखों और लाखों से क्रोडों तक धन प्राप्त हुआ। आज वे क्रोडाधीश हैं तथा जीवनभर के लिये औषधि तथा वैद्य आदि से मुक्ति पा चुके हैं । तात्पर्य यह है कि ७५ वर्ष की आयु में. -भी उनका अनुकूल स्वास्थ्य है । चरित्रनायक श्री मोहनलालजी महाराज साहिब के मुखारविन्द से लिए हुए व्रत नियम का प्रत्यक्ष प्रभाव है यह इन भाईश्री के दृष्टान्त से स्पष्ट और प्रभावित होता है । वैसे तो गुरुवर के प्रभाव के बारे में कई पुरुषों के मुख से आश्चर्यजनक बातें सुनी है । उदाहरणार्थ सूरत जैसा शहर एक समय में जो जैनसमाज के धनाढ्यों का केन्द्रधाम माना जाता था । वह नगर इतना समृद्धि सम्पन्न होने का मुख्य कारण पूज्यपाद गुरु महाराज श्री मोहनलालजी के प्रति अटल श्रद्धा और भक्ति ही था । जिनपूजा, व्रत, नियम आदि पालने में उन को महाराजश्री से प्रबल प्रेरणा प्राप्त हुई थी । और विधिवत् धर्मानुष्ठान में ari के श्रावक बड़े प्रगतिशील नजर आते थे इसलिये इस नगर में सदा आनंद मंगल और वैभव की वर्षा होती थी । संयम की दिव्य शक्ति के बारे में जैसे दशवेकालिक आदि सूत्र - सिद्धान्तों में दर्शाया है कि संयमी पुरुष रंक से राव बनता है । ऐसी शास्त्रीय मान्यता में अपूर्व विश्वास उत्पन्न करानेवाला प्रत्यक्ष उदाहरणरूप श्री गुरुमहाराज का आदर्श जीवन था । जो स्व-पर कल्याण के लिये उपयोगी बना । साथ ही साथ गुरुपद की महिमा और उस की उपासना का प्रत्यक्ष प्रभाव तथा गुरुपद पर समर्पणभाव करने वाले आत्मा को अनुभवसिद्ध उत्थान कैसे भास होता है ऐसे अनेक उपासक एवं आराधकों के जीवन में से मेरे वयोवृद्ध मित्र जिन का जिक्र उपर्युक्त किया जा चुका है उन का उदाहरण भी अवलम्बनभूत है । " Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012077
Book TitleMohanlalji Arddhshatabdi Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMrugendramuni
PublisherMohanlalji Arddhashtabdi Smarak Granth Prakashan Samiti
Publication Year1964
Total Pages366
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size13 MB
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