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શ્રી મેહનલાલજી અર્ધશતાબ્દી ગ્રંથ - आर्य संस्कृति के इतिहास का अवलोकन करने से पता लगता है कि सदा के लिये इस आर्यावर्त की प्रजा के महारथी एवं सूत्रधार ऋषि, मुनि महात्मा ही माने गये है और यह ऋषि, कृषि प्रधान भूमि इसलिये ( Motherland of religion and Philosophy) धर्म और दर्शन की जन्मभूमि मानी गई है, सारांश यह है कि तत्त्वज्ञान की उत्पत्ति का श्रेय भारतवर्ष को ही है । इस देश की समाजव्यवस्था कहिये चाहें राजतंत्र निर्माण कहें सभी जीवन विकास के विषयों में मार्गदर्शन महात्माओं से ही होता था और इसी कारण से प्रजा का जीवन संतोषी, सदाचारी और निरोगी था एवं चहु दिशि शान्ति का साम्राज्य छाया हुआ था ।
आज के भौतिक विज्ञान के युग में (external) बाह्य सुख सामग्री के साधन में बड़ी प्रगति नजर आती हो परन्तु प्रजा के अन्तःकरण में तो अशान्ति की अग्नि ही प्रज्वलित है। पूर्वकाल में वास्तविक शान्ति का हराभरा मैदान दृष्टिगोचर होता था तथापि आज मैदान के स्थान पर बंजर भूमि का भी अभाव है। एक अनुभवी पुरुष का कथन याद आता है कि पूर्वकाल में जो भ्रांति भरे मायावी सुख की सामग्री नरेन्द्र सम्राटो को उपलब्ध नहीं थी वह सुख सामग्रो आज के युग के सामान्य से सामान्य व्यक्ति को प्राप्त है परन्तु पूर्वकाल के सामान्य से सामान्य व्यक्ति के घर में जो शान्ति थी वह आज के युग के सम्राट और समृद्धिसम्पन्न को भी स्वप्न में भी प्राप्त नहीं है। विश्लेषण करने से मूल कारण पर पहुंचते है तो मालूम होता है कि उस काल में अहिंसा, संयम और तप के निधानरूप वास्तविक पूज्य पुरुषों की पूजा का प्रजा के हृदयों में जो स्थान था उस स्थान को आज अपूज्यों की पूजाने ले रक्खा हैं ।
. तत्फल स्वरूप समस्त भारत में ही नहीं परन्तु अखिल विश्व में सर्वत्र अशान्ति के बादल दृष्टिगत होते है। किसी भी समस्या को हल करने के लिये उस के मूल कारण के संशोधन किये बिना अन्य जितने भी उपाय किये जाते हैं वे केवल व्यर्थ ही नहीं जाते हैं परन्तु उन उपायों से कभी २ अग्नि को शान्त करने के लिये घृत डालने जैसा उलटा परिणाम आता हैं । वास्तविक शान्ति का उपाय चाहें आज या कल एक ही है कि अहिंसा, संयम और तप के अवतार रूप पवित्र एवं पूज्य पुरुषों की पूजा का प्रधान स्थान देना ही पडेगा। इस लिये ऐसे पवित्र आन्दोलन का अखिल भूमण्डल में व्यापक बनाने के अमूल्य और अनिवार्य अवसर पर पूज्यवर पवित्रता के स्रोत समान श्री मोहनलालजी जैसे मुनि भगवंतो का आदर्श जीवन प्रजा को स्मरण एक सुन्दर से सुन्दर कार्य समझा जाता है। ऐसे प्रसंग पर मैं अपना कर्त्तव्य समझता हूं कि उन महापुरुष के पवित्र जीवन की स्मृति में श्रद्धांजली स्वरूप उन के चरित्र बल के प्रत्यक्ष प्रभाव का एक आध घटना का वर्णन करुं इस भावना से मेरे वयोवृद्ध मित्र के स्वानुभव को इस स्थान पर उद्भत किया है।
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