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खण्ड
आचार्य श्री की दीक्षा-कुंडली पर एक दृष्टि
गुरु अधिमित्र के घर का भी है । ऐसे प्रबल गुरु के विषय में भृगुसूत्र में लिखा है कि ऐसे व्यक्ति को सोलहवें वर्ष में महाराज योग आता है। वह लगभग ठीक ही है कि पंद्रहवें वर्ष में आपको दीक्षा देकर महाराज बनाया गया ।
सूर्य-लग्नेश होकर नीस्वांश में लाभस्थ है । गुरु अष्टमेश है । चन्द्र से अष्टम में मंगल केतु है । लग्न पर रोगेश शनि की दृष्टि है । ये योग शरीर -स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव डालते हैं । एक से अधिक कमसेकम तीन घटनाएं जीवन में होती हैं जो शरीर-स्थिति को संदिग्ध करती हैं । सिंहराशि शरीर को दृढ तथा गुरु, स्थूल बनाती है। शरीर में वात-कफजन्य व्याधि रहती है । चन्द्र की पापद्वय मध्य स्थिति उदरसम्बन्धी व्याधि, रक्त की सामान्य गति में अंतर तथा विद्याभवन में होने से बाल्यावस्था में विद्याभ्यास में बाधा प्रकट करता है । मंगलकेतुयोग जीवन में शस्त्र-अग्नि पाषाण-जल तथा विषजन्य भय और शरीर में स्थायी वृण या चिन्ह करता है।
चतुर्थ में शनि है। शनि पापराशि वृश्चिक का शत्रुगृह है । भृगुसूत्र में इस का फल-माता का विनाश, सुख का विनाश, निर्धनता आदि लिखा है । आप की ५-६ वर्ष की वय में ही माता का अवसान तथा ८-९ की उम्र में पिता का भी । शनि की दशम पर दृष्टि, पितृकारक सूर्य का नवमांश में जाना-ये योग पितृसुख से चंचित करते हैं, पैत्रिक सम्पत्ति से भी वंचित करते हैं।
चंद्रमा पंचम स्थान में धनराशि का गुरु, दृष्ट शुभनवास्थ तथा पूर्ण है । इसके विषय में भृगुजी लिखते हैं कि-पूर्णचन्द्र हो तो बलवान्, अभयदान में प्रीति, अनेक विद्वानों का कृपाप्रसाद रूप ऐश्वर्य प्राप्त होता है, विजय होती है, सत्कर्मकर्ता, भाग्यशाली, राजयोगी, ज्ञानसंपन्न होता है । सभी जन्म से ही प्रत्यक्ष ही हैं ।
षष्ठ में राहू है। स्वामी शनि से षष्ट स्थान दृष्ट है। मंगल की भी दृष्टि है राहू राजयोगकारक है और मंगल भी अपनी उच्च राशि को देखने से यही फल करता है। रोग-स्थान इस प्रकार पापाक्रान्त होने से शरीर में वृणादि व्याधि करता है।
शुक्र भाग्य स्थान में है। इस के फल में भृगसूत्र में लिखा है कि शुक्र नवम में रहे तो धार्मिक, तपस्वी, अनुष्ठानपरायण पादरमें उत्तम चिन्हयुक्त, अश्व आंदोलनीशिबिका-आदि वाहन युक्त होता है। शुक्र ही पराक्रमेश और दशम-राज्यकर्ममान का स्वामी है । पराक्रम को देखता भी है; अतः अत्यन्त पुरुषार्थी, निराशारहित, अत्यंत प्रवासशील, महान् पूज्यता, धर्म का विशेषज्ञ करता है। अनेक धर्मकार्यों व ग्रंथों का कर्तापन भी प्राप्त होता है ।
बुध दशम में अनेक सत्कार्यों की सिद्धि देता है। प्रतिष्ठावृद्धि, विस्तृत कीर्ति मदान करता है।
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