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आचार्य श्री की दीक्षा-कुंडली पर एक दृष्टि
ज्योतिषाचार्य पं०-विश्वनाथ, रानापुर
मैं यहां पर कुंडली का कोई फलित नहीं लिख रहा हूं । मेरा तो मात्र यही प्रयास है कि इस कुंडली के सामान्य कुछ योग जो कि आचार्यश्री यतीन्द्रसूरीश्वरजी के जन्मकाल से कई वर्ष बाद जीवन की एक विशिष्ट एवं प्रमुख घटना काल के हैं दीक्षा के पूर्व और पश्चात् भी घटित घटनाओं को प्रकट करते हैं ।
आचार्यश्री की जन्मकुंडली उपलब्ध नहीं है । जन्मकाल भी उपलब्ध नहीं है । श्री अरविंदरचित 'गुरु-चरित' में लिखित दीक्षाकुंडली पर ही सामान्य अध्ययन किया गया है और उसीके आधार पर ये पंक्तियां लिखी जा रही हैं ।
दीक्षा-कालश्री विक्रमसं० १९५४ शके १८१९ आषाढ कृष्णा २ तिथि बुधवासरे पूर्वाषाढा में । ईष्टम् १२-५ सूर्य २-२ लग्नम् ४-७ अब शुभ समये श्रीमतां दीक्षा मुहूर्त : शुभो जातः।
के-म
शु
यह कुंडली आपके जन्मकाल से १५ वर्ष बाद की है । किन्तु इसके योग इसके पूर्व की घटनाओं को भी प्रकट करते हैं ।
दीक्षा- कुंडली के लग्न-स्थान में सिंहराशि · अंश से उदित थी। सिंह स्थिर व क्रूर पुरुषराशि है। सिंहलग्न स्थिरता, दृढता, गंभीरता, साहसिकता और पुरुषाथंता प्रकट करती है । लग्न में गुरु अष्टमेश, पंचमेश होकर वर्गोसमी स्थित है। यह गुरु व्यक्ति को विवान् , उन्नतिशील, निरंतर प्रतिभासंपन्न करता है।
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