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श्री यतींद्रसूरि अभिनंदन ग्रन्थ
जीवन
- इसी सामाजिक धार्मिक प्रवृत्ति को स्थायी बनाये रखने के लिये किसी एक अच्छे स्मारक की जीवन में आवश्यकता होती है कि जिसको देख कर मानव-प्रकृति थोडे समय के लिये स्थिर हो जाय, मानव अपनी चंचल प्रवृत्ति पर काबू प्राप्त करता रहे । इसी बात को सोच कर पूर्व महर्षियोंने संसार में मंदिरों और मूर्तियों की परंपरा को कायम की।
मन्दिर व मूर्तियों में इतिहास को जीवित रखने में, प्राचीन कला व संस्कृति को जीवन-दान देने में, मानवप्रकृति को स्थायित्व प्रदान करने में जो सहयोग दिया है वह अन्य किसी वस्तु से प्राप्त नहीं हो सका है। ___एक कारीगर द्वारा बनाई हुई पाषाणमूर्ति में प्राणप्रतिष्ठा के द्वारा भगवान् का स्वरूप पैदा किया जा सकता है तो कोई कारण नहीं है कि वह मूर्ति भी मानव-जीवन को आगे बढाने में सहायक नहीं बन सकती है। मनुष्य कांच में देख कर अपनी शकल व सूरत की अच्छाई व बुराई को पहिचान सकता है। उसी प्रकार किसी भी मूर्ति को सामने रख कर मनुष्य अपनी जीवन की भलाई व बुराई की ओर अपना ध्यान आकर्षित कर सकता है।
भारत वर्ष की सैंकड़ों व हजारों वर्ष पुरानी संस्कृति आज भी मन्दिर व मूर्तियों के खंडहरों द्वारा जीवित दिखाई दे रही है और उसी का उदाहरण व दृष्टान्त पेश कर के विद्वान् प्राचीनता को सिद्ध कर रहे हैं। यदि भारतवर्ष के इतिहास में इन मन्दिर-मूर्तियों व स्मारकों के प्रकरणों को अलग रख दिया जाय और कहा जाय कि बताओ कि भारत वर्ष की जीति और जागती संस्कृति कैसी और क्या थी तो उस के लिये हमारे पास कोई जवाब नहीं है। केवल शास्त्रों के प्रमाण ही मनुष्य देता है, किन्तु शास्त्रों के प्रमाण उतने पुराने नहीं हैं तथा हो सकता है कि किन्ही ग्रंथों में समयानुसार काल्पनिकता की झलक भी पाई जाती हो जिस से वास्तविक स्वरूप तक पहुंचने में बड़ी ही कठिनाई होगी व आत्मा के अन्दर असमंजस, असन्तोष की प्राप्ति होगी।
इस से यह नहीं मान लेना चाहिये कि शास्त्र प्रमाण प्रामाणिक नहीं है। शास्त्र अवश्य प्रामाणिक हैं और शास्त्रोंने भी संसार को नैतिक, सामाजिक, राष्ट्रीय, धार्मिक व आध्यात्मिक
त्मिक जीवन देने में बडी मदद की है. किन्त इतिहास को जीवित रखने में मन्दिर व मूर्तियोंने जो सहायता दी है वह अन्य किसी चीजने नहीं दी है । मोहन जोदरा व मथुरा के कंकालीटीलों की खुदाई उसके साक्षात् प्रमाण हैं ।
___ उसी मार्ग का अवलम्बन कर के श्रीयतीन्द्रसूरिने भी अपने जीवन में सैकड़ों मूर्तियों की प्राणप्रतिष्ठा की, हजारों मूर्तियों को देवालय व मन्दिरों में विराजमान कर इतिहास को एक नया रूप दिया है। जब तक ये मन्दिर व मूर्तियां संसार में कायम रहेंगी उस समय तक यह इतिहास, कला व संस्कृति जीवित रहेगी । इन मूर्तियों की प्रतिदिन पूजने वाले मूर्तियों को देख कर अपनी आत्मा में अवश्य ही शान्ति का अनुभव करते हैं । थोडी देर के लिये ही सही, अपनी लौ परमात्मा की ओर लगाते
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