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श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ
जीवन
बनी रहे ऐसा कार्य करना चाहिये और हमें इस जगह से प्रतिज्ञाबद्ध होकर जाना चाहिये कि हम गुरुदेव के सिद्धान्तों पर अटल होकर चलेंगे।" समाज में जो-जो शिथिल प्रवृत्तियां, अज्ञानता दिन-प्रतिदिन कदम बढाये जारही हैं उनको दूर करने के लिये कटिबद्ध होना ही हमारे इस उत्सव का स्मरणीय कार्य है। साथ ही समाज को धन्यवाद देते हुए आपने कहा कि अति प्रसन्नता का विषय है कि आज समाज ने इतना बड़ा समारोह कर अपने उपकारक गुरुदेव के प्रति हार्दिक भक्ति प्रदर्शित की है।
एक बात का और भी आपने उल्लेख किया कि स्व. गुरुदेव ने समाज, देश और विश्व को जो अमूल्य भेट "श्री अभिधान राजेन्द्र कोष" दिया है वैसा ही एक कोष
और गुरुदेव का हस्तलिखित पड़ा है । उसका नाम है 'सद्दम्बुही महाकोष'। समाज को गुरुदेव के ऐसे हस्तलिखित साहित्य को प्रकाश में लाने के लिये प्रयत्न करना चाहिये ।
। प्रतिदिन मुनिवरों के एवं विद्वानों (जिनमें पण्डित लालचन्द्र भगवानदास गांधी आदि थे) के प्रवचन हुए । यह उत्सव सानन्द सम्पन्न हुआ।
उत्सव सम्पन्न होने पर गुरुदेव श्री राजगढ़ पधारे । यहां पर राणापुर श्री संघ की अत्याग्रह पूर्ण विनती को स्वीकार कर चातुर्मास की गुरुदेव ने स्वीकृति दे दी । राजगढ़ से जेष्ठ वदि ५ को आपने पाराकी ओर विहार किया, क्यों कि वहां पर भगवान् महावीर के आद्य गणधर अनन्त लब्धिनिधान श्री गौतम स्वामिजी की, विद्वद् शीरोमणि प्रभु श्रीमद् विजयराजेन्द्र सूरीश्वरजी महाराज की एवं आचार्य श्रीमद् विजयधनचन्द्र सूरीश्वरजी महाराज की- इन तीन प्रतिमा की अञ्जनशलाका व प्रतिष्ठा का मुहूर्त जेष्ठ सुदि ३ का था । आप श्री के शुभ हस्त से ही यह कार्य सानन्द सम्पन्न हुआ। बाद में अषाढ महिने में झाबुआ श्री संघ की विनती को मान देकर आप झाबुआ पधारे । वहाँ कुछ रोज स्थिरता रही। वहाँ से चातुर्मासार्थ राणापूर की ओर विहार किया। रास्ते में एक मुकाम कर के आप मुनि-मण्डल सह राणापुर पधारे।
यहां के श्री संघ ने बहुत ही शान से आप का स्वागत किया । राणापुर में ऐसे तो ९० घर हैं। उनमें ६० घर श्वेताम्बर सम्प्रदाय के हैं और ३० घर दिगम्बर सम्प्रदाय के हैं। किन्तु ६० घर होते हुये भी यहां के श्री संघ ने गुरुदेव के चातुर्मास एवं बाहर से दर्शनार्थ आनेवाले स्वधर्मी बन्धुओं की सेवा का बहुत लाभ उठाया ।
___ २३ सितम्बर को परम पूज्य गुरुदेव ने समाज संगठन के उपर प्रवचन करते हुए बतलाया की वर्तमान में जो अलग रहेगा वह अलग पड़ जायगा, पीछे रह जायगा और जो मिल कर चलेगा वह अपने हर एक कार्य में सफलता पा सकेगा। आप जानते हैं कि फिरकापरस्ती समाज के लिये कितनी घातक है । आज अपना पतन होने का भी यही कारण है। गुरुदेव के ओजस्वी व्याख्यान से राणापुर श्री संघ ने
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