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________________ खण्ड स्मरणीय ये तीन वर्ष % 3D प्रभावित होकर यह प्रस्ताव पास किया कि मालवी समाज के साथ में आज से जिस प्रकार ओसवालों में सेवक फिरता है उसी भांति हर एक सामाजिक कार्य के लिये दोनों समाज में सेवक बराबर फिरेगा और साथ में सभी प्रकार के सामाजिक व्यवहार भी चालू किये जायंगे। इसमें कोई भी व्यक्ति किसी भी प्रकार का विरोध नहीं करेगा । प्रस्ताव पास होते ही सभी व्यक्तियों के हस्ताक्षर करवाकर जयध्वनि के साथ व्याख्यान समाप्त किया गया । जैन शास्त्रों में उपधान - तप का भी बहुत महत्त्व बतलाया गया है । जो भव्य विधिसह उपधानतप (योग) वहन करके क्रिया में प्रवृत्त होता है वंह अवश्य सुख का भागी बनता है । शुभ या अशुभ करना, कराना और उसकी प्रशंसा करना तीनों का समान फल जैनागमों में कहा गया है। इस बात को लक्ष्य में रखकर यहां पर आपश्री के सानिध्य में उपधानतप का आयोजन किया गया । अत्रत्य श्री संघने आसोज सुदि १३ से उपधान - तप शुरू करवाया। जिसमें मारवाड़, मालवा से १२१ श्रावक, श्राविकाए संमलित हुये थे । एक मास १५ दिन तक यह तप निर्विघ्नता से चलता रहा। दीपावलि के बाद कार्तिक सुदि २ को वर्तमानाचार्य श्री का ७५ वां जयन्ती-उत्सव मनाया गया जिसके उपलक्ष में विशाल समारोह निकला गया। बाद में सभा का आयोजन किया गया। उसमें अनेक वक्ता एवं मुनिवरों ने गुरुदेव के जीवन पर संक्षिप्त प्रकाश डाला। बाद में गुरुदेव श्री ने समाज को धन्यवाद देते हुए कहा कि यहां कि जनता ने जो शान-जयन्ती मनाई है, उसका सही रूप में फल तभी मिल सकता है जब कि यहां पर एक धार्मिक पाठशाला की स्थापना की जाय । आगे अपने प्रवचन में गुरुदेव ने कहा, "आज भौतिक वैभव के पीछे मनुष्य सर्वस्व स्वाहा कर रहा है, मानवता को खतरे में डाल रहा है। आज समाज में अज्ञानता है और वह इतनी अधिक है कि किसी को पता नहीं कि जैन किसको कहना ? अब अपने को यदि अपना स्थायित्व मजबूत बनाना है तो घर - घर में धार्मिक शिक्षा का प्रचार करना चाहिये । आप की प्रभावशालिनी व्याख्यान शैली से राणापुर श्री संघ ने धार्मिक पाठशाला की स्थापना करने की घोषणा के साथ निधि की सर्व व्यवस्था गुरुदेव के सामने ही कर दी। वर्तमान में वह श्रीयतीन्द्र जैन पाठशाला के नाम से चल रही है । तप की पूर्णाहुति के अवसर पर यहां के श्री संघ ने अठाई-महोत्सव किया । शुभ भाव से जो तपस्या कर लेते हैं, उनको माला-परिधान कराई जाती है। मालापरिधान का मुहूर्त मगसर वदि ६ का रखा गया था। इसी अवसर पर नूतन गुरुमन्दिर में गुरुदेव के शुभ हस्तों से भगवान् श्री गौतमस्वामि, प्रभु श्रीमद् राजेन्द्र सूरीश्वरजी, श्रीमद् धनचन्द्र सूरीश्वरजी महाराज की मूर्तियों की स्थापना भी शुभलग्ननवांश में की गई । अट्टाई महोत्सव में बहार से अच्छी संख्या में जनता आई थी। इस प्रकार वहुत ही आनन्द एवं उल्लास से तप व चातुर्मास पूर्ण हुआ । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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