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________________ खण्ड स्मरणीय ये तीन वर्ष रतलाम पधारे । जनता ने आपश्री का अच्छा स्वागत किया । यहां आप १५ गेज तक विराजे। बाद में विहार कर सागोदिया तीर्थ के दर्शन करते हुए बीबड़ोद तीर्थ पधारे । वहां से शिवगढ़, बासुन्द्रा, राववटी, किशनगढ, बामनिया, खवासा, थान्दला, अग्राल, मेघनगर, झाबुआ, राणापुर, पारा आदि गांवों में धर्मोपदेश देते हुए आप श्री स्वशिष्य-मण्डल सह फागण सुदि १३ को श्री मोहन खेड़ा तीर्थ भूमिपर पधारे। रास्ते के गांवों की जनता ने आप श्री का स्वागत किया । हर एक गांव में आपके पधारने से अपूर्व उल्लास की वृद्धि हुई ! श्री मोहन खेडा तीर्थ पर अर्धशताब्दी महोत्सव की जोरोंसे तैयारियां होने लगीं। __यह श्री शत्रुञ्जयावतार श्री आदिनाथ भगवान् का तीर्थ स्थान है और सोने में सुगंध वाली कहावत के अनुसार यह तीर्थ तो है ही, किन्तु प्रभु श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज का समाधि-मन्दिर भी यहीं पर है। मूल मन्दिर श्री आदिनाथ भगवान् के संमुख में दोनों ओर श्री पार्श्वनाथ भगवान् के मंदिर हैं। इनके सामने गुरुदेव का समाधि-मंदिर है । पीछे की ओर श्री आदिनाथ भगवान् की चरणपादुका है। यह तीर्थ राजगढ़ से पश्चिम दिशा में एक मील की दूरी पर है। इधर अर्धशताब्दीमहोत्सव के दिन भी निकट आगये थे । सारे भारत एवं भारतेतर देशों में भी उत्सव का प्रचार बहुत अधिक हो चुका था और आगे भी प्रचार चालू ही था । निकट भविष्य में काम जोरोंसे चलाया गया । सर्वप्रथम यात्रियों के ठहरने के लिये विशाल "श्री राजेन्द्र नगर" का निर्माण किया गया । साथ ही 'यतीन्द्र सदन' 'भूपेन्द्र सदन' 'धनचन्द्र सदन' 'श्री सिद्धचक्र सदन' आदि उपनगर भी बनाये गये । भक्तसमूह ज्यादा से ज्यादा साथ में बैठकर गुरुदेव को श्रद्धाञ्जलि अर्पित कर सके-इस दृष्टि से 'श्री राजेन्द्र नगर' के समीप ही एक विशाल पण्डाल की रचना की गई थी। ऊपर के भाग में "श्री राजेन्द्र-चित्रकला प्रदर्शनी" का निर्माण किया गया था । कलाकारों ने उसको सुन्दर ढंग से सजाया था । इस प्रकार तैयारियां होते-होते महोत्सव का समय भी निकट आगया । चैत्र सुदि १३ (१२ अप्रेल ) १९५७ से उत्सव का प्रारंभ हुआ और वैशाख वदि १ (१५ अप्रेल) तक यह उत्सव चला। इतनी अल्प अवधि में भी। मालव, गूर्जर प्रान्तों से हजारों की संख्या में भक्तजन उत्सव में भाग लेने के लिये उपस्थित हुए । आप के तत्त्वावधान में चैत्र सुदि १५ को प्रातः स्वर्गस्थ गुरुदेव को मानवमेदिनी ने श्रद्धाञ्जलि अर्पित की एवं 'स्मारक ग्रन्थ' समर्पित किया । वर्तमानाचार्य श्री ने अपने प्रवचन में समाज को यही सन्देश दिया कि जमाने को देखते हुए हमें अब अपने आपको सम्हल जाना आवश्यक है। आज हम सभी गुरुदेव को श्रद्धाञ्चलि समर्पित करने के लिये एकत्रित हुए हैं, परन्तु इसकी सच्ची याद हमेशा घर, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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