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________________ खण्ड स्मरणीय ये तीन वर्ष २३ % E भविष्य के लिये भी कुछ कर लेने के लिये सतर्क होना चाहिये । समाज में अक्षानता का बोल बाला है और सदशान का वास होता जा रहा है। हमें अब जाग्रत होकर समाज में सदशान की सरिता बहाने के लिये एक ऐसी संस्था का निर्माण करना चाहिये जहां से हमारे बच्चे सञ्चे रत्न बनकर निकलें एवं विश्व को झगमगा दें। अपने सिद्धान्तों को समझले और अन्यों को समझाने के प्रयत्न में सफलता प्राप्त कर सके।” १० बज गये थे । गुरुदेव ने विशेष न कहते हुये केवल समाज का संगठन हो और शिक्षा का प्रचार हो- यही मेरी आन्तरिक मनो-कामना है, कह कर अपने प्रवचन को पूर्ण किया। वह समय, यह दृश्य आज भी धूम रहा है नजर के सम्मुख । - मालववासी आज गद्गद् हो उठे चिर काल से प्रतीक्षा थी जिनकी उनके आने पर। दूसरे दिन जगह - जगह के श्री संघों ने चातुर्मासार्थ गुरुदेव से प्रार्थना की। समय देखकर गुरुदेव ने राजगढ़ चातुर्मास करने की स्वीकृति प्रदान कर दी। चारों ओर हर्षध्वनि से जयनाद हो उठे ।...... अषाढ वदि ३ का प्रातः काल था। गुरुदेव ने चातुर्मासार्थ राजगढ़ में प्रवेश किया । क्या उस समय की स्वागत की तैयारी ! राजगढ़निवासियों ने अपूर्व उल्लास एवं हर्ष से गुरुदेव का प्रवेशोत्सव मनाया । चातुर्मास के अन्तर्गत मोहन खेडा की पूण्य भूमि पर "गुरुकुल" स्थापना के लिये राजगढ़ संघ की तरफ से सहायता प्रदान की गई और बाद में समीपस्थ गांवों में भी इसके प्रचार के लिए श्री बालचन्दजी मास्टर आदि को भेजे गये । उन्होंने इसके लिये अच्छा सहयोग प्राप्त कर लिया और फलतः मालव प्रान्तीय प्रतिनिधियों का एक सम्मेलन बुलाया गया । जिस में करीब ३५ गांवों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। सर्वानुमत से एक गुरुकुल व्यवस्थापक-समिति का निर्माण किया गया। उसके अध्यक्ष, उपाध्यक्ष एवं मंत्री, कोषाध्यक्ष चुने गये और गुरुकुल की स्थापना का निश्चिय किया गया । चातुर्मास के पश्चात् गुरु-सप्तमी का पुण्य पर्व श्री मोहन खेडा तीर्थ में बड़े ही ठाठ से मनाया गया । चैत्र सुदि १० को श्री मोहन खेड़ा तीर्थ में ही मन्दिर पर ध्वजदंड की पू. गरुदेव के हाथ से प्रतिष्ठा की गई। राजगढ़ से विहार करके गुरुदेव श्री मुनि -मण्डल सह भेडगाँध, दशाई, कड़ोद, कानुन, अमला होते हुये बड़नगर पधारे । अर्घ शताब्दी की योजना कार्यावित करने के लिए “ अखिल भारतीय राजेन्द्र समाज के प्रथम अधिवेशन को" यहां पर करने के लिये अत्रत्य श्री संघ ने बहुत साग्रह प्रार्थना की। गुरुदेव ने श्री संघ की प्रार्थना स्वीकार कर ली और बस त्वरा से सम्मेलन की तैयारियां होने लगी। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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