________________
आचार्य श्री यतीन्द्रसूरीश्वरजी के मालव-भ्रमण
स्मरणीय ये तीन वर्ष लेखक :- श्रीमद्विजययतीन्द्रसूरीश्वरान्तेवासी-मुनिजयप्रभविजय
__ "पधारिये, गुरुदेव ! पधारिये । मालवे के निवासी आपका स्वागत करने के लिये अत्यधित उत्सुक हैं । आपका विरह पांच वर्ष या दस वर्ष नहीं; परन्तु पच्चीस वर्ष तक उन्होंने सहन किया है । मालववासी अब इस प्रकार आपका विरह सहन करने को समर्थ नहीं हैं । क्या कहे ! गुरुदेव ! एक-एक मानव आपके पावन उपदेश से अपने आपको पवित्र करने की अभिलाषा रख रहा है ।" मालव प्रान्त के आगन्तुक भक्त जन कह रहे थे मरुभूमि को पवित्र बना रहे गुरुदेव से।
क्या किया जाय क्षेत्र-स्पर्शना जहां की होती है वहाँपर ही जाया जाता है । आपकी इतनी तीव्र अभिलाषा है तो आपकी भावना भी पूर्ण होगी।” बात की बात में दिन चले जारहे थे । आहोर का चतुर्मास पूर्ण हुआ और मालव भूमि के भाग्य का उदय हुआ । गुरुदेव का मुनि-मण्डलसह विहार हुआ मालव प्रान्त की ओर।।
मार्ग में श्री केशरियाजी तीर्थ की यात्रा करते हुये क्रमशः दाहोद पधारे । वहां पर थान्दला, झाबुभा व राणापुर का श्री संघ आया। उन्होंने अपनेअपने गांव में पधारने की प्रार्थना की। किंतु आचार्यश्रीने लाभालाभ को सामने रखते हुए राणापुर पधारने की स्वीकृति दी। वहां से श्री लक्ष्मणी तीर्थ के लिये संघ निकला और श्री लक्ष्मणी तीर्थ के दर्शन करने के पश्चात् अलिराजपुर, कुकसी, बाग, टाण्डा, रिंगणोद इत्यादि क्षेत्रों में पधारे। वहां पर आपका अपूर्व स्वागत हुआ । पश्चात् आप मोहनखेडा तीर्थ पधारे ।
अहा! यह क्या ! मालव भूमिका मनहर पावन तीर्थ-क्षेत्र मोहनखेड़ा गुञ्जित हो रहा था। जंगल में मंगलसा दृश्य पुलकित हो रहा था । मानव मात्र के दिल को लहरा रही थी आनंद की लहरें। कितने वर्षों अपना भाग्य चमका-इस खुश हाली मे गांव - नगर का जनसमूह आज आ गया था श्री मोहन खेड़ा की पूण्य भूमि पर । श्री सौधर्मगच्छाधीश प्रभु श्री राजेन्द्रसूरीश्वर जी का समाधि-मंदिर एवं शत्रुञ्जयावतार श्री आदिनाथ प्रभु का मन्दिर है जहां पर। जंगम स्थावरतीर्थ की यात्रा का लाभ कौन चूक सकता है भला!
पधारने के पश्चात् गुरुदेवश्रीने अपने मंगल प्रवचन को प्रारम्भ करते हुये समाज को संदेश दिया, "हमारा समाज धनवान् है, विचारवान् है, अतः अब
षों
में
Jain Educationa international
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org