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________________ १८ श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ ગુણગાન કરવા આપના આ લેખિનીના બહાર છે, સકિત સદ્ગુરૂદેવની સજ્ઞાનને પ્રચાર छे, ગુરૂરાજ મમ શિરતાજ તુમ શિષ્યાણુ કરતા યાચના, સામર્થ્ય ચુત આશીષ અર્ધા પૂર્ણ હેાસમ કામના, पुष्पांजलि.. गुरुदेव ! बाल्यावस्था से ही आपने संसार को निस्सार समझ कर, स्नेहीजनों का स्वार्थपूर्ण स्नेह जान कर, सत्पथप्रदर्शक सद्गुरु श्री राजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज के पाघन करकमलों से भागवती - प्रव्रज्या को अंगीकार की, गुरु-सेवा में रह कर के सदज्ञान को प्राप्त किया और गुरुगच्छ को समुन्नत बनाने के लिये हमेशां तत्पर रहे। आज पर्यंत उन गुरुदेव के सिद्धान्तों पर अडिग चल कर हम जैसे भूले पथिकों को मार्गप्रदर्शन किया । महामहीम ! जीवन 44... आप के उन गुणों का वर्णन मेरी चन्द पंक्तियां कैसे कर सकती हैं ? हीरकजयन्ति के पुण्य पर्व पर हार्दिक भावना से आपश्री दीर्घायु हों, जिस से हम जैसे अज्ञानियों का मार्ग सरल बन सके। इस शुभकामना के साथ शत शत वंदन करता हूं...... Jain Educationa International - भवदीय चरणरेणु मुनि शान्ति विजय की बन्दना । कुसुमाञ्जलि पूज्यपाद् गुरुदेव ! आपकी चरण- रेणुका स्पर्श कर न जाने कितने मानव धर्मश्रद्धा को प्राप्त होगये और न जाने कितने अंधकूप में पड़ने से बच गये । शुभकर्मों के उदय से हमको आपके पावन चरण-कमलों की निश्रा प्राप्त हुई । और आपने हमको दीक्षा देकर भव सुधारने का सुयोग दिया। इतना ही नहीं अद्यावधि हमारे साध्वीपन को सच्चा साधुत्व प्राप्त हो यह आपका निरंतर ध्यान रहा। हमारे जैसे ही अनेक बालमुनि आपका सान्निध्य, अधिष्ठापन, मिश्रा प्राप्त करके अपना नरभव सुधार रहे हैं। हे पूज्य गुरु ! आपको हम इस हीरक जयन्ती के शुभावसर पर इन शब्दों में श्रद्धाञ्जलि अर्पित करती हैं कि हम सर्व अधिकाधिक आपकी दया, कृपा का पात्र चारित्र साध कर बनी रहे । विनीताश्रमणी संघ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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