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श्रीमद् यतीन्द्रमूरि-अभिनंदन
लक्ष्मीचन्द जैन 'सरोज'
हे यतीन्द्र सूरीश्वर ! आज तुम्हारा अभिनन्दन है । __हीरक सुखद जयन्ती पाकर पुलकित हृदय - गगन है ॥ महावीर के श्रमण - धर्म में तेरा जन्म हुआ है। __उनकी दिव्य ध्वनि के सम ही तूं भी सुखद हुआ है ॥ गुरु राजेन्द्र के वरद हस्त ने तेरा रूप सँवारा ।
मालव के अभिराम अंक में तूं ने धर्म प्रसारा ॥ सौम्यमूर्ति ! गुणवान ! भाग्य भी तुझको गोद लिये है।
स्वस्थ ! साधुसन्तुष्ट ! वन्द्य हे ! सुखप्रद मोद दिये है ॥ तूं अगाध अध्यात्मवाद का रत्नाकर है।
तूं अथाह व्यवहारवाद का सीमाधर है ॥ सत्य-अहिंसा, शील-अचौर्य से तुझ में रत्न अपरिमित ।
तूं चिरायु हो जग-जग का जीवन-पथ करने आलोकित । जैन संस्कृति का तू जीवित जगती पर सुखद स्त्रोत है
विश्ववन्धु तव अन्तरात्मा दया-धर्म से ओत-प्रोत है । तव चिन्हों पर चलने उत्सुक यह समाज है आया ।
जिसके उर में तेरा शासन वर्तमान में छाया ॥ तूं महान उद्देश्य लिये बढ़ता चल पथ में आगे ।
जिससे भौतिकयुग में फिर से धार्मिकता जागे ॥ हे यतीन्द्र सूरीश्वर ! आज तुम्हारा अभिनंदन है ।
कह रहा व्यक्ति, कहता समाजः प्रमुदित हृदय-सदन है ।
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